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Tuesday, May 10, 2011
चैनल और अखबार वाले ‘धौनी’ का नाम भी सही नहीं लिखते?
मिथिलेश कुमार
देश के गिनती के अखबारों को छोड़कर लगभग सभी समाचार पत्र-पत्रिकाएं और और चौबीसो घंटे चलने वाले समाचार चैनल टीम इंडिया के कप्तान महेंद्रसिंह धौनी का नाम गलत लिखते हैं। दैनिक हिंदुस्तान महेंद्र सिंह धौनी का सही नाम लिखने वाला देश का एक अन्य अखबार बन गया है। इसके पहले दैनिक जागरण और प्रभात खबर ने महेंद्र सिंह धौनी का सही नाम लिखने का निर्णय किया था। संभव है सही नाम लिखने वालों में देश के कुछ और अखबार और पत्रिकाएं शामिल हों लेकिन अन्य पत्र-पत्रिकाएं सही नाम लिखना कब सिखेंगे? किसी भी नाम को गलत लिखना कहां तक सही है? क्या गलत लिखने को सही कहा जा सकता है?
महेंद्र सिंह धौनी कोई ऐसा नाम नहीं है जिससे लोग अपरिचित हों। यह किसी अखबार के लिए लगभग रोज छपने वाला नाम है और यही नहीं यह नाम टाइम की हाल ही जारी सूची में दुनिया के 100 प्रभावशाली लोगों में शामिल है। भारतीय क्रिकेट कप्तान के नाम को दैनिक जागरण, प्रभात खबर और हिंदुस्तान के अलावा लगभग अन्य सभी पत्र-पत्रिकाएं महेंद्र सिंह धोनी लिखते हैं जबकि धौनी खुद कह चुके हैं कि उनका नाम महेंद्र सिंह धौनी है और यही लिखा जाना चाहिए। पता नहीं अखबार और चैनल वाले किसी के नामों के साथ खिलवाड़ करना कब तक जारी रखेंगे? वह भी जानबूझकर? क्या इसके लिए धौनी को अखबारों और चैनलों में इस बात का विज्ञापन देना होगा कि उनका नाम महेंद्र सिंह धौनी लिखा जाए?
अखबार और चैनलों में लिखने वाले लोग ही सोंचें कि अगर कोई उनका नाम गलत लिखे तो उनकी क्या प्रतिक्रिया होगी। शायद वे लिखने वाले को कह दें कि आपको तो सही से एक नाम लिखना भी नहीं आता लेकिन उसका क्या, जो गलती रोज होती है या छपती है। क्या इसे यह माना जाए कि यह जान बूझकर की जाने वाली रोज की गलती है या यह माना जाए कि एक बार गलती कर दी तो उसे ही रोज लिखो ताकि बार- बार कहने से झूठ भी सच जैसा हो जाए? या स्टाइल सीट के आड़ में यह छूट ली जा सकती है? शायद धौनी के साथ भी यही हुआ है।
यह गलती सिर्फ महेंद्र सिंह धौनी तक सीमित नहीं है। क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन के नाम के साथ भी ऐसा है। न्यूज एजेंसी भाषा और वार्ता सहित दैनिक हिंदुस्तान, अमर उजाला, पत्रिका, दैनिक जागरण और नई दुनिया जहां इसे सचिन तेंदुलकर लिखते हैं वहीं दैनिक भास्कर, प्रभात खबर और नव भारत टाइम्स इसे सचिन तेंडुलकर लिखते हैं। ऐसा कई बार देखने को मिलता है कि एक ही खिलाड़ी का नाम कई तरह से लिखा जाता है। हद तो तब हुई जब आईपीएल में सितारा बनकर उभरे मुंबई इंडियन के बल्लेबाज को पॉल वाल्थेटी को लगभग सभी अखबारों में अपने अंदाज में लिखा। कई बार तो नाम पढ़ने के बाद खुद उलझन हो जाती है कि किस नाम को सही मानें और किसे गलत? आईपीएल में कई सितारे हैं जिनका नाम अलग-अलग अखबारों में भिन्न भिन्न तरीके से लिखा हुआ मिल जाएगा। आखिर इसका हल क्या है?
ऐसा नहीं है यह सिर्फ क्रिकेट तक सीमित है। ऐसा टेनिस, फुटबॉल, बैडमिंटन और अन्य खेलों में भी देखने को मिलता है। बैंडमिंटन की प्रसिद्ध खिलाड़ी साइना नेहवाल को ही आप नई दुनिया और हिंदुस्तान में सायना और दैनिक भास्कर में साइना नेहवाल पढ़ सकते हैं। टेनिस में तो विदेशी खिलाडियों के नाम सभी अपनी सुविधानुसार लिखते हैं। बात सिर्फ खेल जगत के नामों तक सीमित नहीं है। जन लोकपाल विधेयक के लिए चर्चा में आए अण्णा हजारे हो या सुरेश कलमाडी उनके नामों के साथ ही अखबारों में ऐसा ही विरोधाभास दिखा। अण्णा को कई अखबारों ने अन्ना लिखा तो कुछ ने अण्णा। अभी हाल ही में जब सुरेश कलमाड़ी गिरफ्तार हुए तो उनकी खबर फ्रंट पेज लीड खबर बनी। और इसे भी किसी अखबार ने कलमाड़ी तो किसी ने कलमाडी लिखा। फेसबुक पर राकेश कुमार मालवीय ने जब पूछा सारे अख़बार कलमाड़ी लिख रहे हैं और भास्कर ने लिखा है कलमाडी.. सही क्या है तो सौमित्र राय का जवाब आया, जनाब, नर्मदा नदी को पार करते ही बिंदी का चलन खत्मा हो जाता है। कलमाडी ही शुद्ध है, कलमाड़ी नहीं।
नामों को लेकर एक गुजारिश यही की जा सकती है कि आज जब जन संचार के त्वरित साधनों के बीच हम काम कर रहे हैं, हमारे पास इसे सही करने के कई विकल्प मौजूद हैं तो क्या हम इसे सही नहीं कर सकते? नामों को कैसे लिखा जाए, इसको लेकर क्या एक राय कायम नहीं होनी चाहिए? पिछले कई सालों में हमने कई शहरों के नाम बदलते देखे हैं। कलकत्ता को कोलकाता होना या बंगलोर का बेंगलुरू होना या फिर बंबई का मुंबई होना और इन नामों में गलती नहीं की जा सकती, फिर लोगों के नामों को लिखने में इतनी विविधता कैसे स्वीकार की जा सकती है? शेक्सपियर ने भले ही कहा हो कि नाम में क्या रखा है लेकिन उसके नीचे भी उनका ही नाम आता है, किसी और का नहीं। मतलब साफ है, हर किसी के लिए अपना नाम महत्वपूर्ण है और उसे सही तरह से ही लिखा जाना चाहिए। देश के लोगों के नामों में भला ऐसी गलती क्यों स्वीकार की जा रही है?
मीडिया खबरों पर आधारित प्रतिष्ठित वेबसाइट मीडिया खबर पर छपे इस आलेख का लिंक
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इसे हिंदी हार्टलैंड की बदनसीबी ही कहेंगे कि तथाकथित हिंदी अखबार ही हिंदी भाषा की सबसे ज्यादा भद् पीट रहे हैं। उन्हें कोई समझाए भी तो कैसे, स्वयं को प्रबुद्ध वर्ग में जो मानते हैं, वो किसी की सुनते कहां हैं.
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