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Monday, May 23, 2011

दक्षिणी सूडान का उदय और चुनौतियां


-मिथिलेश कुमार

तीन दिनों की लगातार लड़ाई के बाद उत्तरी सूडान ने दावा किया है कि उसने दक्षिणी सूडान की सीमा पर स्थित तेल समृद्ध विवादित शहर आबिए पर कब्जा कर लिया है और इसके साथ ही एक नया सवाल उठ खड़ा हुआ है कि क्या सूडान में एक बार फिर गृह युद्ध आरंभ हो गया है क्योंकि इससे पहले दुनिया के सबसे नवीनतम देश के गठन का रास्ता साफ हो गया है।
इसी साल 9 जुलाई को उत्तरी सूडान से अलग होकर दक्षिणी सूडान नामक एक नया राष्ट्र बनेगा। दक्षिण अफ्रीका के इस नए देश की राजधानी यूबा होगी। दक्षिणी सूडान दुनिया का सबसे नया और 193वां देश होगा। इस नवीनतम राष्ट्र के उदय का रास्ता कैसे साफ हुआ?
यह संभव हुआ इसी साल 9 से 15 जनवरी के बीच हुए जनमत संग्रह की वजह से जिसमें लगभग 99 फीसदी से अधिक लोगों ने उत्तरी सूडान से अलग होने का निर्णय किया। सूडान दो हिस्सों में न बंटे ऐसा मानने वाले बहुत कम लोग थे। इसमें सिर्फ लगभग 16 हजार लोगों ने एकीकृत सूडान के पक्ष में मतदान किया। एक हफ्ते तक चले मतदान के दौरान अड़तीस लाख से अधिक लोगों ने वोट डाले गए। जनमत संग्रह के लिए कीनिया, आस्ट्रेलिया और ब्रिटेन समेत आठ मतदान केंद्र बनाए गए। उत्साह ऐसा था कि दक्षिणी सूडान के 60 हज़ार से ज़्यादा विस्थापित लोगों ने इस मतदान में हिस्सा लिया। अब सवाल है आखिर वह कौन सी वजह रही जिसने सूडान को विभाजित करने के लिए जनमत संग्रह के लिए मजबूर किया और देश दो हिस्सों में बंटने जा रहा है।
दरअसल सूडान की खारतुम सरकार और सूडान पीपल्स लिबरेशन आर्मी के बीच 2005 में हुए शांति समझौते में तय किया गया था कि इसके दक्षिणी हिस्से को तुरंत स्वायत्तता दी जाए और 2011 की शुरुआत में जनमत संग्रह से तय कर लिया जाए कि क्या वहां रह रहे लोग अलग देश के पक्ष में हैं या नहीं? इसी पर अमल करते हुए जनमत संग्रह कराया गया। आखिर इस जनमत संग्रह पर सहमति कैसे बनी और इसकी जरूरत क्यों पड़ी?
असल में सूडान भौगोलिक रूप से भी दो हिस्सों में बंटा हुआ है। उत्तरी सूडान और दक्षिणी सूचना। दक्षिणी सूडान दुनिया के सबसे अविकसित क्षेत्रों में से एक माना जाता है और वहां के लोग लगातार आरोप लगाते रहे हैं कि उन्हें उत्तरी सूडान के सरकार के हाथों लगातार दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा है। उत्तर और दक्षिण क्षेत्र के बीच लगातार संघर्ष का भी लंबा इतिहास रहा है और इस संघर्ष की मुख्य रूप से दो वजहें रही हैं पहली धार्मिक और दूसरी आर्थिक। देश के उत्तर में अरबी मुसलमान बसते हैं और दक्षिण में एनमिस्ट व ईसाई निवास करते हैं। नस्ली मुद्दे पर इन दोनों क्षेत्र के लोगों के बीच लगातार हिंसक भिड़ंतें होती रही हैं। इस देश को पहले 1955 से 1972 तक और फिर 1983 से 2005 तक दो बार गृह युद्ध का सामना करना पड़ा है और दूसरे गृह युद्ध में ही करीब 25 लाख लोग मारे गए और लगभग 50 लाख लोगों को विस्थापित होना पड़ा।
इससे अलग प्राकृतिक संसाधन के रूप में पेट्रोलियम और कच्चे तेल के भंडार सूडान में भरे पड़े हैं और सूडान प्रतिवर्ष अरबों डॉलर के तेल का निर्यात करता है। दक्षिणी सूडान इसमें से 80 प्रतिशत उत्पादन करता है लेकिन राजस्व के रूप में उन्हें केवल 50 प्रतिशत ही मिलता है। उत्तरी और दक्षिणी सूडान के बीच राजस्व का बंटवारा भी संघर्ष की एक वजह रहा है। इन लड़ाइयों के बीच कर्नल उमर अल बशिर ने 1989 में रक्तविहिन तख्तापलट कर सत्ता हथियाई थी। इसी बीच वहां दारफुर जैसा संकट भी खड़ा हुआ, जिसमें आरोप है कि सूडान की खारतुम सरकार ने अरब छापामारों की फौज खड़ी करके देश के पश्चिम में स्थित इस इलाके में ऐसा भयानक कत्लेआम कराया कि वह नस्ली रक्तपात की एक मिसाल बन गया। भयावह गृहयुद्ध के बीच अंतरराष्ट्रीय दवाब के बाद सूडान में शांति समझौता हुआ जिसके बाद जनमत संग्रह और अलग राष्ट्र की पटकथा तैयार हुई। तो अब अलग राष्ट्र बनने से इस देश के सामने चुनौतियां क्या होंगी?
सूडान उत्तरी अफ्रीका में स्थित है और क्षेत्रफल के लिहाज से दुनिया का दसवां बड़ा देश है। दुनिया की सबसे लंबी नदी नील देश को पूर्वी और पश्चिमी हिस्सों में विभाजित करती है जबकि व्हाइट नील इसे उत्तरी और दक्षिणी हिस्सों में बांटती है। माना जा रहा है कि दक्षिण सूडान के रूप में नए देश का उदय दशकों से जारी सिविल वॉर के खात्मे पर अंतिम मुहर लगाएगा। इस जनमत संग्रह के ज़रिए उत्तर और दक्षिणी सूडान अलग अलग हो जाएंगे और एक लंबे गृह युद्ध का अंत होगा जिसके बाद दोनों क्षेत्रों की अलग-अलग देशों के रुप में पहचान बन सकेगी।
हालांकि जनमत संग्रह के बाद भी दोनों क्षेत्रों के बीच कई और महत्वपूर्ण मुद्दों का निपटारा होना बाक़ी है। सीमा, ऋण और तेल संसाधन जैसे मुद्दे काफ़ी जटिल हैं और दुनिया के सबसे नए देश का निर्माण बहुत आसान नहीं होगा। दक्षिणी और उत्तरी सूडान के बीच आर्थिक संसाधनों के बंटवारे को लेकर वार्ताएं बाकी हैं। ये वार्ताएं कठिन होंगी क्योंकि सूडान में तेल का विशाल भंडार है। उत्तरी इलाक़े में लोग विभाजन को लेकर चिंतित हैं क्योंकि सूडान के अधिकतर तेल संसाधन दक्षिणी सूडान में हैं। यही नहीं तेल समृद्ध क्षेत्र आबिए पर भी फैसला होना बाकी है और यह सवाल अभी भी है कि इसकी विशेष प्रशासनिक स्थिति बनाए रखी जाएगी या इसे दक्षिणी सूडान में शामिल किया जाएगा।
दूसरे पड़ोसी राज्य भी इस देश की राजनीतिक स्थिति से प्रभावित होंगे। इसके उत्तर में मिस्र, उत्तर पूर्व में लाल सागर, पूर्व में इरिट्रया और इथियोपिया, दक्षिण पूर्व में युगांडा और केन्या, दक्षिण पश्चिम में कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य और मध्य अफ्रीकी गणराज्य, पश्चिम में चाड और पश्चिमोत्तर में लीबिया स्थित है। केन्या, इथोपिया और युगांडा नील नदी के पानी पर जूबा के साथ सौदा करना चाहते हैं। वहीं दक्षिण के तेल भंडारों और उत्तर के खेती वाली जमीनों में भी विदेशी शक्तियों की हिस्सेदारी है। साझेदार देश नए सूडान की ओर आशा भरी नजरों से देख रहे हैं क्योंकि अभी दक्षिणी सूडान के लिए यह शुरुआत है। उसके समक्ष नया संविधान बनाने की चुनौती है। वर्तमान सरकार को इसका ब्लूप्रिंट तैयार करना होगा। एक बार यह तैयार हो जाए तो फिर चुनावों का रास्ता भी साफ हो जाएगा। दशकों से गृहयुद्ध झेल रहे इस देश में परिवहन व्यवस्था बदहाल है। पूरी दुनिया को नए सूडान के सृजन में सहयोग करना होगा क्योंकि वहां शांति और स्थिरता विश्व शांति के हित में होगी और सूडान की करोड़ों जनता की जिंदगी भी आसान करेगी।

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