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Tuesday, May 3, 2011

पारदर्शिता के लिए सूचना तकनीकी का उपयोग


मिथिलेश कुमार

सरकार आज जिन तीखे सवालों का सामना कर रही है उनमें से भ्रष्टाचार भी एक है और भ्रष्टाचार को समाप्त करने में मदद करने वाले उन सभी विकल्पों पर विचार किया जाना चाहिए जिससे इसे रोकने में मदद मिले।

पारदर्शिता और जवाबदेही वे दो चीजें हैं जिन्हें भ्रष्टाचार रोकने का एक विकल्प माना जा सकता है। तो क्या पारदर्शिता और सरकारी कामों की सुस्त रफ्तार को तेज करने के लिए सूचना तकनीकी का उपयोग नहीं किया जा सकता है, भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के लिए क्या इस तरह के उपाय नहीं किए जाने चाहिए जिससे एक पारदर्शी व्यवस्था को बढ़ावा मिले। आखिर वे कौन से विकल्प हो सकते हैं जो पारदर्शिता को बढ़ावा दे सकते हैं और सुस्त रफ्तार को तेज करने में सहायक हो सकते हैं?
भारत में इंटरनेट बहुत तेजी से विकास कर रहा है और इसकी पहुंच साल दर साल बढ़ती जा रही है। सूचना और संचार तकनीकी संबंधित मामलों पर संयुक्त राष्ट्र की नियामक संस्था इंटरनेशनल टेलेकम्यूनिकेशन यूनियन (आईटीयू) की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 1998 में महज 14 लाख इंटरनेट उपयोगकर्ता थे वहीं 2010 में यह संख्या बढ़कर आठ करोड़ दस लाख पहुंच गई है। भविष्य में उपयोगकर्ताओं की संख्या तेजी से बढ़ेगी। ऐसे में हमें सोचना होगा कि क्या सूचना तकनीकी का उपयोग भ्रष्टाचार के खिलाफ कैसे एक कारगर हथियार बन सकता है?
विधेयक में यह प्रावधान होना चाहिए कि यह कानून सूचना के अधिकार जैसा प्रभावी हो और विभागों और मंत्रालयों को डिजिटल होने के लिए बाध्य करे। इसके तहत सभी मंत्रालयों और विभागों के डिजिटल होने के लिए एक समय सीमा तय करना भी अनिवार्य करना होगा। क्योंकि इसके पहले वर्ष 2006 में संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने नेशनल ई-गवर्नेंस प्लान का खाका तैयार किया था जिसमें सरकार की मुख्य सेवाओं को डिजिटल करना था। विभिन्न मंत्रालयों और विभागों ने 27 मिशन मोड प्रोजेक्ट की योजना बनाई थी लेकिन करीब चार साल बीत जाने के बाद भी उनमें से कई मिशन केवल योजना स्तर पर ही हैं।
इलेक्ट्रॉनिक सर्विस डिलीवरी बिल संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री कपिल सिब्बल के उस सौ दिनी एजेंडे का हिस्सा है जो उन्होंने एक जनवरी 2010 को जारी किया था। तो क्या इस विधेयक को तैयार करने में कोई बाधा नहीं आएगी और इसे आसानी से तैयार कर लिया जाएगा? सरकारी अधिकारियों का यही तर्क होगा कि सेवाओं को ऑनलाइन करने पर आने वाले खर्च के मुकाबले इससे होने वाले फायदे कम होंगे। लेकिन डिजिटल होने का यह कम बड़ा फायदा होगा कि आम लोगों तक सेवाओं की पहुंच बढ़ेगी और यह लोगों के हित में होगा। उदाहरण के लिए 2009 की तुलना में 2010 में टैक्स ई-रिटर्न फाइल करने वालों की संख्या 67 प्रतिशत बढ़कर 51 लाख हो गई और यह इस तथ्य की पुष्टि करता है कि ऑनलाइन सेवाएं लोगों के बीच लोकप्रिय होंगी।
साथ ही इस विधेयक को तैयार करने के लिए आईटी एक्ट 2000 में भी संशोधन करना होगा। इस एक्ट में कहा गया है कि किसी भी सरकारी विभाग को अपनी सेवाएं ऑनलाइन करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। हालांकि आईटी एक्ट आने के बाद से उसमें संशोधन हो चुके हैं और इसमें एक और संशोधन कर इसे नए बिल के अनुसार बhttp://www.blogger.com/img/blank.gifनाया जा सकता है। इसके लिए सरकार की इच्छाशक्ति की दरकार होगी। यदि बिल पास होता है तो यह पारदर्शिता लाने में सहायक होगा। साथ ही सरकारी विभागों को अधिक प्रभावी और जवाबदेह बनाएगा।
यह बिल इतना अहम् है तो इससे जुड़ी चिंताएं भी स्वाभाविक हैं। सबसे अहम् चिंता सेवाओं के मेंटनेंस, साइबर सुरक्षा और डाटा सुरक्षित रखने की होगी। और यह वह क्षेत्र है जो आईटी में बड़ी संख्या में रोजगार उपलब्ध कराएगा। मतलब साफ है इससे आईटी कंपनियों के लिए राजस्व का एक नया स्रोत बनेगा। अभी तक हमारी आईटी कंपनियां आउटसोर्सिंग पर निर्भर हैं। विधेयक आने के बाद आईटी कंपनियों की निर्भरता काफी हद तक विदेशों से घटेगी और उन्हें देश में ही बहुत सारे प्रोजेक्ट मिलेंगे। यह देश के आईटी कर्मियों के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा करेगा।

दैनिक समाचार पत्र देशबंधु में छपे इस आलेख की लिंक :

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