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Thursday, July 21, 2011

छोटे शहरों में एफएम का तराना


मिथिलेश कुमार

केंद्र सरकार ने एफएम रेडियो को छोटे शहरों तक पहुंचाने के लिए लाइसेंस देने को हरी झंडी दे दी है। एफएम के विस्तार के तीसरे चरण में 227 शहरों में 839 नए एफएम स्टेशन खुलेंगे, जिसके लिए बोली लगाने का प्रस्ताव है। फिलहाल देश के 86 शहरों में 248 एफएम स्टेशन हैं। छोटे शहरों में एफएम का विस्तार क्या मायने रखता है? एफएम का दायरा बढ़ाने के क्या फायदे होंगे? और क्या छोटे शहरों में एफएम के लिए कुछ चुनौतियां भी होंगी?

हाल ही में कैबिनेट की बैठक में सूचना प्रसारण मंत्रालय के ‘निजी एजेंसियों के जरिए एफएम रेडियो प्रसारण सेवाओं के विस्तार संबंधी नीतिगत दिशा निर्देशों के तीसरे चरण के प्रस्ताव’ को मंजूरी दी गयी है, उसमें दो बातें प्रमुख है। पहली, एफएम को तीसरे चरण में एक लाख तक की आबादी वाले शहरों तक पहुंचाया जाएगा। दूसरी, एफएम रेडियो को आकाशवाणी के समाचार प्रसारण की अनुमति दे दी गयी है। इन निर्णयों का क्या असर होगा?

एफएम के तीसरे चरण के विस्तार में एक लाख की आबादी वाले वे शहर शामिल हैं, जो जिला या छोटे शहर होंगे। फिलहाल देश में 606 जिले और 5161 शहर हैं लेकिन इनमें से 514 जिलों में अभी एफएम नहीं है। क्या उन्हें मनोरंजन के साधन के रूप में एफएम की सुविधा का हक नहीं है? क्या सिर्फ बड़ी आबादी वाले शहरों के लोगों को ही एफएम की सुविधा मिलनी चाहिए? अब तक मेट्रो और बड़े शहरों में खुले एफएम के क्या मायने हैं? क्या इसका एक संदेश यह है कि यदि आपको एफएम सुनना है तो बड़े शहर में रहना होगा?

एमएफ के तीसरे चरण का विस्तार काफी हद तक इस भेदभाव को दूर करने में कामयाब होगा। तब एफएम के मनोरंजन की धुनें छोटे शहरों से होते हुए गांवों तक भी पहुंचेंगी और तब महानगरों के मेट्रो में, बस स्टॉप पर मोबाइल पर एफएम का मजा लेते लोगों या कार में बजते एफएम की तरह यह गांव की चौपाल तक दस्तक देगा। यह एफएम के लिए अगली क्रांति होगी। क्योंकि 10वीं पंचवर्षीय योजना (2002-07) के दौरान ही एफएम को देश की 60 प्रतिशत जनता तक पहुंचाने का लक्ष्य था लेकिन 11वीं योजना के दौरान भी यह महज 40 प्रतिशत लोगों तक ही पहुंच सका है। 294 शहरों में एफएम के विस्तार के साथ ही अनुमान है कि एफएम की पहुंच देश की 90 प्रतिशत आबादी तक हो जाएगी क्योंकि देश की 75 प्रतिशत जनसंख्या 33 फीसदी जिलों में रहती है। इसका मतलब है कि तीसरे चरण में एफएम बड़ी आबादी तक पहुंच बनाने में कामयाब होगा। एफएम में ऐसा क्या है जो अन्य माध्यमों से अलग बनाता है और गांवों तक इसकी पहुंच होनी जरूरी है?

संचार के माध्यमों में रेडियो एक ऐसा अनूठा माध्यम है, जिसकी अपनी विशेषताएं हैं और इस वजह से यह मनोरंजन, सूचना और शिक्षा का बेहतरीन माध्यम है। ऐसे में एफएम पर समाचारों के प्रसारण की अनुमति देना भी इसके दायरे को विस्तृत करेगा। एफएम रेडियो एक ऐसा माध्यम है, जिसमें ग्रासरूट लेवल तक पहुंच की क्षमता है। यह माध्यम अपनी विशेषताओं की वजह से वहां पहुंच सकता है, जहां अखबार और टीवी की पहुंच नहीं है क्योंकि इसके लिए आपको टीवी और अखबार की तरह अतिरिक्त खर्च नहीं करना पड़ता। तो उम्मीद करें कि तीसरे चरण का एफएम विस्तार जैसे ही पूरा होगा, छोटे शहरों यानी डी ग्रेड शहरों में एफएम की पहुंच होगी। यह एफएम रेडियो के लिए संजीवनी का काम करेगा, क्योंकि तब एफएम बिहार में पटना और मुजफ्फरपुर से निकलकर छपरा और सिवान में भी पहुंचेगा। छत्तीसगढ़ में यह रायपुर से बाहर निकलकर दुर्ग, भिलाई, कोरबा और राजगढ़ में भी पहुंचेगा और सब कुछ योजनानुसार हुआ, तो शहरों में भी तीन तीन नये एफएम स्टेशन खुलेंगे यानी सूचना और मनोरंजन के इस माध्यम के लोकतंत्रीकरण की यह अगली प्रक्रिया होगी। तो क्या एफएम का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ मनोरंजन होना चाहिए या इसके इतर भी इसकी भूमिकाएं हो सकती हैं?

एफएम अपनी साफ और स्पष्ट आवाज की वजह से शॉर्ट वेब और मीडियम वेब की तुलना में अनूठा है। सरकार ने एफएम पर समाचारों के प्रसारण की अनुमति दे दी है लेकिन उन्हें सिर्फ आकाशवाणी के समाचारों के ही प्रसारण की अनुमति है। इस सीमा को भी और विस्तार देने की जरूरत होगी क्योंकि आकाशवाणी भी अधिकांश खबरों के लिए पीटीआई और यूएनआई जैसी एजेंसियों पर निर्भर है तो एफएम के लिए सिर्फ आकाशवाणी का दायरा क्यों रखा गया है? पहले भी ट्रैफिक अपडेट, अंतरराष्ट्रीय खेलों के परिणाम जैसे क्रिकेट मैच के स्कोर आदि को सूचना प्रसारण मंत्रालय ने समाचार की श्रेणी से अलग रखा था और इनके प्रसारण पर प्रतिबंध नहीं था। अब एफएम पर कुछ जरूरी सूचनाओं को भी समाचार और करेंट अफेयर्स से अलग रखा गया है। खेल आयोजनों की कमेंट्री और इससे जुड़ी सूचना, यातायात तथा मौसम से संबंधित जानकारी, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, उत्सवों, परीक्षाओं, परिणामों, पाठ्यक्रमों में प्रवेश, करियर मार्गदर्शन, रोजगार अवसरों की उपलब्धता और स्थानीय प्रशासन द्वारा मुहैया करायी जाने वाली बिजली-पानी की आपूर्ति, प्राकृतिक आपदाओं और स्वास्थ्य संदेश संबंधी जानकारियों को गैर-समाचार तथा सामयिक मामलों की प्रसारण श्रेणी में रखा गया है। यह एफएम के लिए स्थानीय स्तर पर बेहद जरूरी है। तो फिर एफएम संचालन में समस्या क्या होगी?

एफएम के तीसरे चरण के तहत लाइसेंसों की नीलामी के जरिये सरकार को 1,733 करोड़ रुपये का राजस्व मिलने की उम्मीद है और यह 1200 करोड़ की वर्तमान रेडियो इंडस्ट्री में महत्वपूर्ण विकास होगा। फिलहाल विज्ञापन बाजार में रेडियो की हिस्सेदारी महज 5 प्रतिशत है। तीसरे चरण के विस्तार के बाद इसमें 2 प्रतिशत बढ़ोत्तरी की संभावना है। छोटे शहरों में एमएम चलाने के लिए राजस्व जुटाना एक बड़ी चुनौती होगी लेकिन तीसरे चरण के तहत निजी एफएम चैनलों को उनके प्रसारण तंत्र के तहत नेटवर्किंग की अनुमति देकर लागत कम करने की कोशिश की गयी है। तब भी एफएम के तीसरे चरण का विस्तार रोजगार के कुछ अवसर उपलब्ध कराएगा।

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1 comment:

  1. मिथिलेश जी,

    आपका लेख सराहनीय है और मेरी ओर से ढेर सारी शुभकामनाएं। परंतु यहाँ मैं आपसे कहना चाहूंगा कि इस लेख में कुछ और बातों का उल्लेख किया जा सकता था। जिससे आपके पाठक को भविष्य में एफएम प्रसारण से होने वाले बदलावों के बारे में सोचने का अवसर मिल पाता। अब जरा सोचिए कि यदि एफएम स्थानीय स्तर पर आता है तो वहां किस तरह से विज्ञापन जुटाए और यदि जुटा भी लेगा तो उनका स्तर क्या होगा? क्या वे आकाशवाणी या मेट्रो एफएम के विज्ञापनों के समान ही होंगे या हर परचून की दुकान वाला कहेगा भईया सांडे का तेल लगाओ गंजे सिर पर बाल उगाओ। क्योंकि स्थानीय स्तर पर छोटे शहरों में कुकुरमुत्ते की तरह विज्ञापन बनाने वाली छोटी-छोटी कंपनियां ऊग आएंगी और इनका भविष्य क्या होगा? क्या आपने यह सोचा है? किस तरह ये काम करेंगी या फिर अपने कर्मचारियों से करवाएंगी? ऐसे शहरों का एक गणित होता है छोटा शहर+छोटा सोच+छोटा काम+छोटी वेतन+छोटी ख्वाहिशें+छोटा मुनाफा+छोटा खर्च। यानि कुल मिलाकर सबकुछ छोटा ही छोटा। एक और बात यहां महत्वपूर्ण जान पड़ती है जो भारत में सांस्कृतिक दृष्टिकोण रखती है वो ये कि जब छोटे शहरों में ये एफएम पहुंच जाएगा तो क्या उन शहरों में इसे मेट्रो संस्कृति का बीजारोपण कहा जा सकता है। क्या एफएम स्थापन के तीसरे चरण के बाद जन्म लेने वाले बच्चे स्थानीय स्तर पर ही मेट्रो की जीवनशैली से रूबरू होने लगेंगे। क्या छोटे शहरों वाली शांतिप्रिय भारतीय संस्कृति को किसी तरह का नुकसान होगा या प्रभाव पड़ेगा।

    यदि आपने इन बातों पर भी अपने विचार लिखे होते तो आपके पाठक में इसके बारे में एक राय कायम करने या इस पर विचार करने की ललक पैदा होती। खैर कोई बात नहीं फिलहाल के लिए शेष शुभ।

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