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Tuesday, July 12, 2011
न्यूज ऑफ द वर्ल्ड : बंद अध्याय से आरंभ सवाल
-मिथिलेश कुमार
ब्रिटेन में फोन हैकिंग को लेकर आरोपों में घिरे मीडिया मुगल रूपर्ट मर्डोक के अखबार ‘न्यूज ऑफ द वर्ल्ड’ को बंद कर दिया गया लेकिन इसे लेकर कुछ सवाल अभी भी लोगों के जहन में हैं जिनका जवाब ढूंढा जाना बाकी है। जिस अखबार का अंत किया गया, क्या इसे बंद करना सही उपाय था? इसके साथ ही बहस इस बात पर भी हो रही है कि मीडिया जब अपनी हद को पार कर जाए तो उसे कौन नियंत्रित करेगा?
एक झटके से बंद हुए अखबार में काम कर रहे लोगों के भविष्य के लिए क्या कोई आवाज उठाएगा? और सबसे बड़ी बहस ये भी है कि प्रेस के ऐसे कृत्य के बाद क्या उस पर अंकुश लगाने या नियामक के लिए कौन से उपाय होने चाहिए? सवाल प्रेस और पुलिस के व्यवहार और प्रेस के नियमन का भी है? सवाल ये भी है कि आखिर जो मुख्य आरोपी हैं वे अगर सत्ता प्रतिष्ठानों और अखबार मालिकों के करीबी हों तो उन पर कार्रवाई कौन करेगा? खबरें जुटाने के विवादास्पद तरीकों पर निगरानी कैसे होगी? लोगों की निजता में दखल देने वालों पर कौन नकेल कसेगा? नैतिकता और मर्यादा की तमाम सीमाओं को लांघकर पत्रकारिता के किन मूल्यों की स्थापना होगी? किसी चलते अखबार को बंद करने का फैसला आसान नहीं है? आखिर वे कौन सी परिस्थितियां थी जिसकी वजह से ब्रिटेन के इस सर्वाधिक प्रसारित अखबार को एकाएक बंद करना पड़ा और इसके क्या संदेश हैं?
1 अक्टूबर 1843 को इस अखबार का पहला संस्करण आया था और इन 168 वर्षों में यह अखबार ब्रिटेन के राजपरिवार की छह पीढियों का गवाह रहा है। जैसा कि इस अखबार के अंतिम संपादकीय में लिखा गया- इसने इतिहास जिया है, इतिहास देखा है और इतिहास बनाया है। इस अखबार ने महारानी विक्टोरिया के निधन, टाइटैनिक जहाज के डूबने, दो विश्व युद्ध, 1966 में फुटबॉल विश्व कप जीत, चंद्रमा पर पहला व्यक्ति, डायना की मौत सहित कई ऐतिहासिक मुद्दों को कवर किया। मर्डोक ने 1969 में इस अखबार को खरीदा था और इसे नई ऊंचाईयों तक ले गए।
ब्रिटेन में 27 लाख प्रतियों के साथ लगभग 75 लाख पाठकों तक पहुंचने वाला साप्ताहिक टैबलायड न्यूज ऑफ द वर्ल्ड बहुत घाटे में भी नहीं था और पिछले दो दशक से इसकी लोकप्रियता इसी दम पर पाठकों में बनी थी कि इस अखबार में सेलेब्रेटी की जिंदगी से जुड़ी गॉसिप, सेक्स और क्राइम का सनसनीखेज मसाला छपता था। अखबार ने इसी में दो कदम आगे बढ़ते हुए अपनी सीमाएं तोड़ते हुए वर्जित क्षेत्रों में प्रवेश किया और उसका नतीजा हुआ कि उस पर कई गंभीर आरोप लगे। इसमें सर्वाधिक विवादास्पद आरोप फोन टैंपिग का है।
जब एंडी कालसन संपादक थे तब अखबार ने पुलिस अधिकारियों को पैसे देकर जानकारी जुटाई। पुलिस अधिकारियों को अखबार द्वारा रिश्वत देकर जानकारी लेने का यह अनूठा उदाहरण दुनिया की पत्रकारिता जगत में दुर्लभ है। यही नहीं फोन हैकिंग के मामले तो और अद्वितीय है।
अटकलें हैं कि अखबार ने लगभग 7000 लोगों के फोन हैक कराए और खुफिया तरीके से जानकारी जुटाई। इस काम में जासूसों की भी मदद ली गई। इसी का नतीजा था कि अखबार ने 2005 में प्रिंस विलियम के घुटने की चोट की खबर छाप दी जिसके बाद महल के अधिकारियों ने कहा कि यह खबर वॉयस मेल को हैक किए बिना संभव नहीं थी और इसका परिणाम हुआ कि शाही मामलों के संपादक को चार महीने की जेल की सजा हुई। कालसन के संपादक रहते हुए कई सेलेब्रेटी और राजनीतिज्ञों के फोन हैक कराए गए। इन्हीं उदाहरणों में सबसे अमानवीय कृत्य भी सामने आया जब स्कूल की एक 13 वर्षीय लड़की मिली डाउलर की 2002 में हत्या हो गई थी और हत्या के बाद निजी जासूस की मदद से अखबार ने उसका फोन हैक कराया और कुछ वॉयस मेल हटा दिए गए। इससे उस परिवार को यह झूठी उम्मीद जगी कि शायद उनकी बेटी जिंदा है लेकिन ऐसा नहीं था। उसकी हत्या हो गई थी।
हैंकिंग के अमानवीय कृत्यों में उन परिजनों के फोन हैक किया जाना भी शामिल है जो 7 जुलाई 2005 के बम धमाकों में मारे गए और उन परिजनों के फोन भी जिनके परिवार के सदस्य इराक और अफगानिस्तान युद्ध में मारे गए। खबरें निकालने की जद्दोजहद में अखबार के रिपोर्टर और नीति निर्धारक अपनी सारी मर्यादाओं को भूल गए। आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट किए। ब्रिटेन वह देश है जो दुनिया को सभ्यता का पाठ पढ़ाता है लेकिन मीडिया मुगल मर्डोक के इस साप्ताहिक की बात निराली थी और इससे भी अनूठा यह सवाल है कि मिली डाउलर की हत्या के समय इस टैबालायड की संपादक रही रिबेका ब्रूक्स पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है?
रिबेका ब्रूक्स मर्डोक की नजदीकी मानी जाती हैं और इसी वजह से वे अब मर्डोक के न्यूज इंटरनेशनल में मुख्य कार्यकारी हैं। 2003 में वे वर्ल्ड ऑफ द न्यूज की संपादक रहीं और उसके बाद द सन का संपादक बना दिया गया था। उन्होंने ब्रिटेन के हाउस ऑफ कामंस के पैनल के समक्ष कहा था कि हम पुलिस को पैसे देकर जानकारियां लेते हैं। आज वह मर्डोक की कंपनी की प्रमुख हस्तियों में शुमार हैं। यदि दोषी सत्ता प्रतिष्ठान के इर्द गिर्द का हो तो क्या वह निर्दोष हो जाता है? कहा जा रहा है कि सिर्फ इस एक महिला को बचाने के लिए पूरा अखबार बंद करना पड़ा और 200 लोगों के भविष्य पर अब भी प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है। क्या अखबार बंद करना इस सवाल का हल है? सवाल तो अवैधानिक तरीके अपनाने और उन पर फैसला लेने वाले लोगों का है? लोग सवाल पूछ रहे हैं कि आज जबकि उस अखबार में ज्यादातर लोग नए हैं। संपादक बदल गए हैं तब भी गाज उन पर क्यों गिराई गई जो गलती इन लोगों ने की ही नहीं और जिन लोगों ने गलती की, वे अब भी मजे में हैं?
पुलिस अधिकारियों को रिश्वत दिए जाने के समय एंडी कालसन अखबार के संपादक थे लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई? उसके बाद एंडी कंजरवेटिव पार्टी के संचार निदेशक बन गए थे और बाद में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन के मीडिया सलाहकार के पद से नवाजे गए। मतलब साफ है जो इस कृत्य के लिए दोषी है, वे अब महत्वपूर्ण पदों पर काबिज हैं और इनके गिरेबां पर हाथ डालने से आसान काम अखबार को बंद करना ही था। क्योंकि अब जब अखबार के इन कृत्यों की हर तरफ निंदा हो रही है, वे किसी तरह अपनी साख बचाना चाहते हैं। आखिर वे अपनी साख क्यों बचाना चाहते हैं? इसके पीछे वजह है कि वे ब्रिटिश स्काई ब्रॉडकास्टिंग (बीस्काईबी) की शेष 61 प्रतिशत हिस्सेदारी पर भी कब्जा चाहते हैं और इसमें उन्हें ब्रिटेन की संसद का समर्थन चाहिए। वे नहीं चाहते कि न्यूज ऑफ द वर्ल्ड का विवाद इस सौदे के आड़े आए।
मीडिया खबर में छपे इस विश्लेषण की लिंक
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