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Wednesday, August 3, 2011

प्रेरक कलाम- “आई एम कलाम”



पिछले दिनों बच्चों पर केंद्रीत फिल्म चिल्लर पार्टी और उसके पहले स्टेनली का डिब्बा चर्चा में रही। इस सूची में एक और नाम है- ‘आई एम कलाम’। नील माधव पंडा द्वारा निर्देशित इस फिल्म को पहले ही कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं।

फिल्म की कहानी राजस्थान के एक गरीब परिवार के बच्चे छोटू (हर्ष मायर) के इर्द-गिर्द घूमती है। गरीबी की वजह से बच्चे की मां (मीना मीर) उसके लिए काम की तलाश करती है और छोटू को भाटी मामा (गुलशन ग्रोवर) के ढाबे पर काम करने के लिए छोड़ जाती है। बच्चा आते ही ढाबे के मालिक के ऊंटनी के पैर का जख्म जड़ी-बूटियों की मदद से ठीक कर देता है। भाटी बच्चे के काबिलियत से खुश होता है लेकिन छोटू को लैप्टन (पितोबास) के अधीन काम करना होता है और वह उस पर हुकुम चलाना चाहता है। लैप्टन अमिताभ का फैन है लेकिन जब रात को सोने की बारी आती है तो वह छोटू को बाहर सोने को कहता है। छोटी अपनी समझदारी से उसकी खाट पर सो रहा होता है और लैप्टन खाट के नीचे। क्योंकि छोटू की मां भी कहती है “उसका दिमाग रेल भी तेज चलता है।”

भाटी के ढाबे के पास एक महल है जिसके आधे हिस्से में एक राजपरिवार रहता है और आधा हिस्सा हैरिटेज होटल के रूप में है। होटल में रहने वाले लोगों के लिए खाना-नाश्ता भाटी के ढाबे से जाता है। छोटू को होटल में खाना पहुंचाने का जिम्मा मिलता है। इसी दौरान छोटू राजपरिवार के इकलौते प्रिंस रणविजय (हुसैन साद) से दोस्ती करता है।

एक दिन छोटू टेलीविजन पर गणतंत्र दिवस की परेड देख रहा होता है और वह अब्दुल कलाम को देखता है। वह उनसे प्रभावित होता है और अपना नाम कलाम रख लेता है। वह राष्ट्रपति से मिलना चाहता है। ढाबे पर आने वाली एक फ्रांसिसी महिला लूसी (बिट्राइस ऑरडिक्स) से भी छोटू दोस्ती करता है और उससे फ्रेंच सीखता है। वह प्रिंस से पढ़ना सीखता है और बाद में प्रिंस के लिए एक भाषण लिखता है। उस भाषण पर प्रिंस को पुरस्कार मिलता है लेकिन पैलेस के कारिंदे कलाम के कमरे की तलाशी लेकर प्रिंस के कपड़े-किताबें पाकर उसकी पिटाई करते हैं, उसे चोर घोषित करते हैं और उसे यहां से दूर चले जाने का फरमान सुनाया जाता है।

छोटू एक ट्रक पर सवार होकर दिल्ली पहुंचता है और राष्ट्रपति से मिलना चाहता है। उसे गार्ड इंट्री नहीं देते हैं। उधर जैसे ही प्रिंस को छोटू के चले जाने की बात पता चलती है, वह अपने पिता को बताता है कि छोटू चोर नहीं है, और सारी चीजें उसने खुद दी थी। प्रिंस के पिता को गलती का एहसास होता है और लूसी मैडम के साथ प्रिंस छोटू को खोजने दिल्ली पहुंचता है। छोटू इंडिया गेट के पास मिल जाता है। उसे वापस लाया जाता है और छोटू भी प्रिंस के स्कूल में पढ़ने लगता है।

हर्ष मायर ने फिल्म में छोटू की भूमिका में जान डाल दी है। संजय चौहान के डॉयलाग्स राजस्थानी बोली में खासे प्रभावी हैं। सत्तासी मिनट की फिल्म में संदेश है- कर्म और किस्मत के द्वंद्व के बीच कर्म बड़ा होता है। हर बच्चा बड़े सपने देख सकता है। यह फिल्म ढाबे में काम करने वाले उन हजारों बच्चों का प्रतिनिधित्व करती है जो गरीबी की वजह से पढ़ाई नहीं कर पाते और उनके लिए प्रेरणास्रोत कलाम जैसा व्यक्तित्व होता है। स्माइल फाउंडेशन की इस शानदार प्रस्तुति में एक-एक पात्र अपने चरित्र के साथ न्याय करते दिखते हैं।

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