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Friday, March 14, 2025

 


यह असंभव को संभव करने की कहानी है..


क्या आप सोच सकते हैं। 120 किमी की बाइक यात्रा हो, इतने लंबे रास्ते में कहीं बाइक की चाबी गिर जाए। उस चाबी के गुच्छे में 4 और चाबियां हो, और आखिर में वह मिल जाए। यह चाबी गुम होने और रोमांचक तरीके से मिल जाने की कहानी है। 


पटना में नौकरी के दौरान देर रात 2 बजे तक ऑफिस से छुट्‌टी होती थी। होली के अवसर पर दो दिन की छुट्टी होती थी। मैंने प्लान किया कि सुबह जल्दी निकल जाएंगे। पर जब सुबह जगे तो घड़ी में 8 बज रहे थे। 


बाइक स्टार्ट किया और निकल पड़े। होली के दिन सड़क पर भीड़ कम होती है। सड़क लगभग खाली होती है। वैसी जैसी कोरोना के दौर में लॉकडाउन के दौरान हुआ करती थी। होली के अवसर पर दुकानें, बाजार बंद रहते हैं। बाजारों पर लगने वाला जाम नदारद रहता है। इक्का–दुक्का मुर्गा और बकरी का मांस बेचने वाले दुकाने खुली रहती हैं और वहीं थोड़े से लोग दिखते हैं। सार्वजनिक परिवहन का कोई साधन नहीं रहता है। मेन रोड पर ट्रक भी नहीं चलते। 


खाली सड़क पर गाड़ी चलाना आम तौर पर आसान होता है। 


मैं भी चल पड़ा और 120 किमी की दूरी बिना रूके 2 घंटे में तय कर ली। मैं ठीक 10 बजे अपने घर पहुंच गया। घर पर बच्चे बाल्टी में पानी और पानी में रंग डालकर पिचकारी में भर रहे थे। एक–दूसरे पर डाल रहे थे। बाइक जब पहुंची और गाड़ी बंद करने के लिए चाबी पर हाथ गया तो होश उड़ गए। चाबी रास्ते में कहीं गिर गई थी। 


गाड़ी को क्लच अचानक छोड़कर बंद कर सकते थे लेकिन गाड़ी बंद नहीं की। उसे न्यूट्रल किया। गाड़ी स्टार्ट रहने दी। मुझे लगा कि चाबी कहीं आसपास ही गिरी होगी। चलकर देखते हैं। 


सिर्फ एक बाइक की चाबी होती तो छोड़ भी देते। ढृंढने की जहमत न उठाते। लेकिन उस चाबी के गुच्छे में 4 चाबियां और थी। 


अब मैं सोच में पड़ गया। करूं तो करूं क्या?


जल्दी तो आ गया था पर चाबी खो गई थी। 


सिर्फ एक बाइक की चाबी हो तो मैं उसके बारे में ना सोचता क्योंकि बाइक की चाबी दूसरी बना लूंगा या उसका ताला बदल दूंगा लेकिन उस चाबी के गुच्छे में 4 और चाबी थी। 


एक बाइक की, दूसरी में मेन गेट की, जहां मैं रहता था। उसके बाद घर में लगने वाले तालों की और एक अलमारी की।


मतलब मेरे पास चार और ताले और एक बाइक की चाबी। मतलब पांच चाबियां एक साथ खो गई थी।


पांच ताले में से कम से दो तोड़ना, यह पहाड़ सा काम लग रहा था।


यह कैसे हो पाएगा, यह सोचकर गाड़ी बंद नहीं की थी। मैंने गाड़ी वापस मोड़ी।


एक बच्चा जो होली खेलने में मशगूल था, उससे कहा– इधर आओ। मेरे साथ चलो। 


मैंने गाड़ी पर उसे बिठाया। किसी को बिना कुछ बताए, मैं वापस चल पड़ा। 


यह कोई और दिन होता तो चाबी ढृंढने का ख्याल बिलकुल नहीं आता लेकिन चूंकि होली का दिन था, रास्ते पर लोग नहीं थे। इसलिए यह सोचकर चल पड़े कि देखते हैं क्या होता है? 


हालांकि 120 किमी में चाबी कहां गिरी होगी, इसका कोई अंदाजा न था। लेकिन ये जरूर लग रहा था कि चाबी किसी स्पीड ब्रेकर के पास गिरी होगी। 


मैंने बच्चे से कहा– मैं बांयी तरफ देखता चल रहा हूं। तुम दायीं तरफ देखो। ब्रेकर के पास खासतौर पर गाड़ी की रफ्तार बिलकुल धीमी करके चलते जा रहे थे। जहां भी संभावना थी वहां लोगों से पूछा भी, कि यहां कोई चाबी गिरी हुई मिली है क्या? 


जवाब ना में मिलता गया। 


हम आगे बढ़ते गए। 10 किमी के बाद 20 किमी का रास्ता पूरा हो गया। चाबी न मिली।


एक चाय के दुकान के बाद खतरनाक ब्रेकर बना था। वहां एक आंटी दुकान में बैठी थी। उनसे पूछा– यहां कोई चाबी गिरी मिली है क्या? 


उन्होंने कहा– आज तो नहीं मिली है। लेकिन ये पहले कभी दो चाबियां यहां गिरी हुई मिली हैं, देखिए शायद इसमें से आपके कोई काम आ जाए। 


उसमें एक स्प्लेंडर और एक पैशन की चाबी थी। वह काम न आई। मैंने उनको चाबी वापस किया। और कहा ये रखिए। हाे सकता है– कोई मेरी तरह चाबी खोजता हुआ आ जाए। तो उसे वापस कर दीजिएगा। 


हम आगे बढ़ चले। 


30 किमी पूरा हो गया। पिछली सीट पर बैठे बच्चे का भिंगा हुआ शर्ट, पैंट, गंजी सब सूख गया था। 

उसे प्यास लग आई थी। एक जगह रूककर चापाकल पर पानी पिया और अब लगा कि चाबी नहीं मिलेगी। वापस चलना चाहिए। क्योंकि अभी 90 किमी का रास्ता बचा था और चाबी मिलने की उम्मीद खत्म हो गई। 


हम वापस चल पड़े। 


पहले हमने बायीं तरफ के घर वाले या कहीं कोई दिख रहा था तो पूछा था। अब हम वापसी में दायीं तरफ के लोगों के वही प्रक्रिया दोहरा रहे थे। चाबी मिलने की उम्मीद कम थी लेकिन हमें उसी उत्साह के साथ चाबी के बारे में पूछताछ जारी रखी।


एक घर के पास टर्न था। वहां एक गुमटी में रंग–गुलाल, पिचकारी बिक रहा था। 


हम वहां रूके और पूछा यहां कोई चाबी गिरी हुई मिली है। 


व्यक्ति ने जवाब दिया– हां।


ऐसे लगा जैसे जान में जान आ गई हो। एक साथ उम्मीद की हजारों किरणें दिखाई देने लगी। 


आदमी ने कहा– हां, चाबी का गुच्छा था। एक 4 साल का बच्चा यहीं खेल रहा था। उसे मिला है। 

मैंने कहा– बच्चे को बुला दीजिए। 


बच्चे को ढ़ूंढने लगा। बच्चा नहीं मिल रहा था। पता नहीं कहां चला गया। 


कई लोग और आ गए। 

सबने कहा– बच्चा तो अभी यहीं था। पता नहीं किधर चला गया। 


तभी एक लड़की आई। उसने कहा– बच्चा चाबी अपनी जेब में रखे हुए था। अभी वह खेत की तरफ गया है। अभी बुलाती हूं। थोड़ी देर में लड़की उस बच्चे के साथ वापस आई। 


उसने वह चाबी का गुच्छा बच्चे से लेकर मुझे दिया। यह मेरी चाबी थी। 


हमारी खुशी का ठिकाना न रहा। अब साढ़े ग्यारह बज गए थे। 


हमने वहां सबको धन्यवाद दिया। बच्चे को दुकान से कुछ उपहार दिए और खुशी से चल पड़े। 


घर पहुंचकर जब पूरा वृतांत सुनाया तो लोगों को भरोसा नहीं हो रहा था। 


लोग कहने लगे- यह तो असंभव… संभव हुआ है।


Sunday, February 16, 2025

 

ये उसी ऑटो वाले यात्रा का किस्सा है, जिस ऑटो में मैं लगभग रोज सवारी करता हूं।

तो हुआ यूं कि हर दिन की तरह साकेत मेट्रो से उतरकर घर जाने के लिए ऑटो में बैठा।

उसी ऑटो में, जिसमें तीन लोग तो आराम से बैठते हैं लेकिन चौथे को बैठना कंपलसरी होता है।

एक तरफ की सीट पर बिना चार सवारी पूरा हुए, ऑटो आगे नहीं बढ़ता।

तो मेरी सीट पर मैं एक किनारे पर था। दूसरे किनारे पर एक और व्यक्ति। बीच में एक महिला बैठी और चौथी सवारी के रूप में एक लड़की आई।

लड़की दुबली-पलती थी। उम्र कोई 20 वर्ष। कान में हेडफोन लगाए गाना सुनते हुए।

महिला थोड़ी तंदरूस्त थी। लड़की मुश्किल से थोड़ी सी जगह कैसे भी करके बैठ गई। ऑटो चल पड़ा।
थोड़ी दूर ही ऑटो चला तो महिला ने लड़की से कहा- ठीक से बैठो। और आगे होकर बैठो। मुझे दिक्कत हो रही है।

लड़की ने कहा- मैडम मैं आगे ही हूं। बहुत थोड़ी सी जगह में बैठी हूं। मैं जहां बैठी हूं, इसको ही आगे कहते हैं। इससे आगे बढ़ी तो सीट से नीचे आ जाऊंगी।

पीछे होकर तो आप बैठी है। उसने एक सांस में अपनी बात पूरी की।

महिला युवती पर बरस पड़ी- बात करने की तमीज नहीं है, बड़ों से कैसे बात करते हैं?

महिला रूकी नहीं। आगे कहा- नॉनसेंस, इडियट... पता नहीं। कहां-कहां से आ जाते हैं?

लड़की ने अपना हेडफोन हटाया और कहा- मैडम इतनी दिक्कत हो रही है आपको तो प्राइवेट ऑटो करके आया करो।

महिला फिर कुछ बुदबुदाने लगी और चुप हो गई।

लड़की वाकई थोड़ी सी जगह में बमुश्किल बैठी थी। लेकिन शाम को सबको जल्दी होती है, घर जाने की। उसे भी थी। उसपर भी उस रास्ते पर कब जाम लग जाए, कहा नहीं जा सकता। तो उसने थोड़ी दिक्कत झेलकर भी जाना मंजूर किया था।

ऑटो में और भी लोग थे। पूरा वृतांत सब लोग देख सुन रहे थे। लेकिन कोई उस महिला को कुछ कहने की स्थिति में नहीं था। क्या पता वह लड़की को छोड़कर जो बोले- उसी पर बरस पड़े।

कुछ देर शांति रही।

लेकिन थोड़ी देर बाद फिर महिला फिर बरस पड़ी- एकदम तुमको समझ में नहीं आ रहा। मुझे कितनी दिक्कत हो रही है। बार-बार तुम मेरे शरीर में टच हो रही हो।

अब मुझसे रहा नहीं गया।

मैंने उस महिला से बस इतना कहा- क्या आप इस रूट पर पहली बार इस तरह के ऑटो में बैठी हैं?

महिला ने कोई जवाब नहीं दिया।

मैंने उस महिला से दूसरा सवाल किया- एक तो वह लड़की है तो आप उसे ऐसे बोल रही हैं। यदि उसकी जगह कोई लड़का बैठा होता तो आप क्या कहती? जरा बताइए।

उस महिला ने मेरे सवाल का कोई जवाब नहीं दिया और उसके बाद उस लड़की से भी कोई बात नहीं कही।

महिला का गंतव्य आया। उसने किराया दिया और चली गई।



कैसे-कैसे लोग होते हैं, दुनिया में... !

Monday, February 3, 2025

 दिल्ली असेंबली इलेक्शन 2025 : शिक्षा रोजगार के खाचे में आपv/s बीजेपी v/s कांग्रेस

दिल्ली में 5 फरवरी को विधानसभा चुनाव के लिए वाेट डाले जाएंगे। 8 फरवरी को रिजल्ट के साथ तय हो जाएगा कि कौन सरकार बनाएगा। सरकार बनेगी तो कुछ वादे जो पार्टियों ने जनता से किए हैं, उन्हें पूरा करने की नैतिक जवाबदेही होगी। तो आइए जानते हैं किस पार्टी ने शिक्षा–रोजगार के लिए क्या वादा किया?

प्रमुख तौर पर तो दो पार्टियां चुनावी लड़ाई में हैं। सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी और देश–दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा लेकिन देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस भी खुद को कहीं–कहीं लड़ाई में लाकर मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में जुटी है।

चुनाव में पार्टियों को वोट की दरकार है। राजनीतिक दलों के लिए वोटर की अलग–अलग कटेगरी है। महिला, युवा, बुजुर्ग, नौकरीपेशा, अगड़ा–पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक आदि, आदि…। वोट के लिए इस राजनीति के इस अलग–अलग कटेगरी के लोगों के लिए लुभावने वादे किए जा रहे हैं।

और इस वादों पर याद आ रही है दुष्यंत कुमार की एक पंक्ति
रहनुमाओं की अदाओं पे फिदा है ये दुनिया
इसको थोड़ा चुनावी माहौल के अनुसार कहें
तो
रहनुमाओं के वादों पे फिदा है ये दुनिया..

बहरहाल
हम इस वीडियो में बात करेंगे दिल्ली चुनाव में युवाओं की पढ़ाई, नौकरी और रोजगार के लिए किस पार्टी के पिटारे में क्या है?

आम आदमी पार्टी (आप)
सबसे पहले बात लगातार पिछले दो बार से दिल्ली में बहुमत से चुनाव जीत रही आम आदमी पार्टी की।
आप ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए जो मेनिफोस्टो जारी किया है, उसमें 15 गारंटियों का ऐलान किया है। इस गारंटी में शिक्षा–रोजगार से जुड़ी जो बाते हैं, उसे प्वाइंटर में समझते हैं–

1. राेजगार की गारंटी–
आप के मुखिया और दिल्ली के पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि आप की पहली गारंटी रोजगारी की गारंटी है। हमने रोजगार में बहुत काम किया है मगर हम चाहते हैं कि दिल्ली में एक भी व्यक्ति बेरोजगार नहीं होना चाहिए। हम इसके लिए पूरा प्लान बना रहे हैं कि किस तरह से दिल्ली के एक-एक युवा को रोजगार दिया जाए।

हालांकि आप पिछले 10 वर्षों से दिल्ली में सत्ता में है, लेकिन उन्होंने इसका जिक्र नहीं किया है कि किस विभाग में कितने पद खाली हैं, या कितनी नौकरियां दी जाएंगी, इसकी कोई संख्या नहीं बताई है।

2.  दलित बच्चों की विदेश में पढ़ाई के लिए डॉक्टर अंबेडकर स्कॉलरशिप योजना–
पढ़ाई से जुड़ी अगली गारंटी डॉक्टर अंबेडकर स्कॉलरशिप योजना है। कोई भी दलित बच्चा यदि पैसे की कमी के कारण विदेश में पढ़ाई करने ना जा पाए तो उनके लिए यह योजना है। दिल्ली में आप सरकार दलित वर्ग के बच्चों को विदेश में पढ़ाई करने के लिए पूरा खर्च देगी।

3. स्टूडेंट्स के लिए बस में मुफ्त सफर, मेट्रो में आधा किराया–
जिस तरह दिल्ली सरकार ने महिलाओं को बसों में मुफ्त सफर करने की सुविधा दी है। इसी तरह छात्र-छात्राओं को भी बसों में मुफ्त यात्रा की सुविधा मिलेगी। स्टूडेंट्स को मेट्रो में भी किराये में आधी छूट दी जाएगी।

हालांकि पिछले दिनों केजरीवाल ने दिल्ली मेट्रो में स्टूडेंट्स को छूट देने के संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा था और इसका अनुरोध किया था।

4. ऑटो, टैक्सी, ई रिक्शा वालों के बच्चों को फ्री कोचिंग दी जाएगी।

साथ ही आम आदमी पार्टी ने कहा है कि पहले से बच्चों को मिल रही अच्छी और मुफ्त शिक्षा जारी रहेगी। 2020 के विधानसभा चुनाव में आप का घोषणा पत्र जारी करते हुए केजरीवाल ने 28 वादे किए थे। उसमें शिक्षा से जुड़े वादे थे।
1. स्कूलों में देशभक्ति पाठ्क्रम
2 युवाओं के लिए स्पोकेन इंग्लिश को बढ़ावा देना शामिल था।
3. दिल्ली के स्कूलों में विश्वस्तरीय शिक्षा की व्यवस्था


भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)
अब बात करते हैं दिल्ली में पूरे दमखम से चुनाव लड़ रही भाजपा की।
दिल्ली के लिए भाजपा ने जो मेनिफेस्टो जारी किया है। उसे संकल्प पत्र का नाम दिया है।
बीजेपी ने इसे 3 पार्ट में जारी किया है।

संकल्प पत्र 2 में युवाओं के शिक्षा और स्कॉलरशिप की बात कही गई है, उस पर एक नजर डालते हैं :
दिल्ली के सरकारी शिक्षण संस्थानों में जरूरतमंद छात्रों को 'केजी' से 'पीजी' तक मुफ्त शिक्षा का वादा
दिल्ली के युवाओं को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में सक्षम बनाने के लिए 15 हजार की एकमुश्त वित्तीय सहायता और 2 बार के परीक्षा केंद्र तक की यात्रा लागत और आवेदन शुल्क की दो अटेम्प्ट तक प्रतिपूर्ति
तकनीकी और व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के लिए 'डॉ. बीआर अंबेडकर स्टाइपेंड योजना' के तहत आईटीआई, स्किल सेंटर पाॅलिटेक्निक आदि में पढ़ रहे अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों को 1 हजार रुपये प्रति माह का स्टाइपेंड
ऑटो-टैक्सी चालकों के बच्चों के लिए उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्कॉलरशिप का वादा
घरेलू कामगारों के बच्चों के लिए स्कॉलरशिप

भाजपा के संकल्प पत्र 3 में दिल्ली में नौकरी–रोजगार की बात है
इसमें पारदर्शी तरीके से 50,000 सरकारी पदों को भरने, स्वरोजगार के 20 लाख अवसर पैदा करने का वादा किया गया है।
बीजेपी के घोषणापत्र में नेशनल कॉमन मोबिलिटी कार्ड योजना के तहत जरूरतमंद छात्रों को दिल्ली मेट्रो में सालाना 4,000 रुपये तक की मुफ्त यात्रा का भी वादा किया गया है।

कांग्रेस
अब बात करते हैं कांग्रेस की
दिल्ली में कांग्रेस ने 5 गारंटी जारी की है। इसमें युवा उड़ान योजना की जो गारंटी है, उसमें युवाओं के रोजगार की बात की गई है।

कांग्रेस ने कहा है कि दिल्ली में सभी बेरोजगार युवाओं को पब्लिक या प्राइवेट सेक्टर में एक साल की अप्रेंटिसशिप दी जाएगी। इस दौरान उन्हें हर महीने 8500 रुपए मिलेंगे। कांग्रेस ने इसे कर्नाटक में लागू किया है।
15 हजार से अधिक सिविल डिफेंस वॉलिटियर्स काे फिर से बहाल करेंगे। ये परिवहन और दिल्ली सरकार के विभिन्न विभागों में काम कर रहे थे।
दिल्ली सरकार में खाली पड़े पदों को नौकरी कैलेंडर के अनुसार भरेंगे जैसा कि तेलंगाना में किया गया है।
स्कूली छात्र–छात्राओं को स्टूडेंट डीटीसी पास मिलेगा।
सभी स्कूलों में खेल अनिवार्य होगा।
ग्रामीण दिल्ली में उपलब्ध भूमि में स्टेडियम बनाएंगे।
प्राइवेट स्कूलों के खेल मैदान छुट्‌टी के बाद पड़ोस के बच्चों के खेलने के लिए खोलना अनिवार्य करेंगे।
मेधावी छात्रों को मुफ्त लैपटॉप, टैबलेट देंगे।

इन वादों को लेकर गुलजार की यह लाइनें फिट बैठती हैं।
आदतन तुम ने कर दिए वादे
आदतन हम ने एतबार किया

दिल्ली की जनता किसपर ऐतबार करेगी। दिल्ली की जनता को कौन सा वादा अच्छा लगा! इसका फैसला 8 फरवरी को होगा।

#DelhiElection2025 #delhiassemblyelection2025 #delhividhansabhaelection2025 #delhividhansabhachunav2025 #Delhibjp #DelhiAap #DelhiCongress


Tuesday, July 9, 2024

नीट में सीट महज एक लाख से अधिक तो 13 लाख बच्चे क्वालिफाई क्यों?

नीट 2024 का रिजल्ट व कटऑफ देखने के बाद मेरे मन में एक सहज जिज्ञासा उठी। वह कुछ आंकड़ों को लेकर थी…
उन आंकड़ों पर आप भी गौर करिए
नीट 2024 के लिए कितने स्टूडेंट्स ने रजिस्ट्रेशन किया 24,06,079
नीट 2024 की परीक्षा में कितने स्टूडेंट शामिल हुए 23,33,297
नीट 2024 में कितने उम्मीदवार अबसेंट रहे 72,782
कितने विद्यार्थियों ने नीट एग्जाम क्वालिफाई किया 13,16,268

लगभग 23 लाख बच्चों ने मेडिकल में एडमिशन के लिए नीट परीक्षा दी। नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) ने इनमें लगभग 13 लाख बच्चों को उत्तीर्ण घोषित किया।

भारत में वर्तमान में कुल 704 मेडिकल कॉलेज हैं। इन सभी कॉलेजों में कुल लगभग एक लाख नौ हजार एक सौ सत्तर मेडिकल सीटें हैं।अब सवाल है कि जब एक लाख से कुछ अधिक सीटें हैं तो 13 लाख से अधिक बच्चे क्यों क्वालिफाई हो रहे हैं? और जब 13 लाख क्वालिफाई हो रहे हैं और इनमें से एक लाख कुछ अधिक का ही एडमिशन होना है तो बाकी के 12 लाख पास होकर भी क्या करते हैं? इतना बड़ा गैप क्यों है?

नीट में स्टूडेंट्स 17, 19 और 23 प्रतिशत अंक लाकर भी कैसे क्वालिफाई हो जाते हैं?

मन में इस जिज्ञासा से पहले मैंने एक खबर पड़ी थी जिसका सारांश यह है कि नीट परीक्षा 720 नंबर की होती है और इस परीक्षा में 120 नंबर लाने वाला भी क्वलिफाई हो जाएगा यानी मात्र लगभग 16.67 प्रतिशत। खैर जब रिजल्ट आया तो 120 तो नहीं लेकिन 2024 में कटऑफ रहा 164 यानी 22.78 प्रतिशत।

हालांकि एक आंकड़ा यह भी है कि 2023 में यह कटऑफ 137 अंक यानी 19.03 प्रतिशत रहा। क्वालिफाई हुए 11 लाख 45 हजार से अधिक और सीटें थीं एक लाख 6 हजार 333…
और 2022 में 117 अंक कटऑफ रहा यानी 16.36 प्रतिशत अंक आ गए तो आप इस परीक्षा में पास हैं।

आप मैट्रिक, इंटर, बीए, एमए, किसी प्रोफेशनल कोर्स की परीक्षा देते हैं। उसमें यह तय होता है कि आपको कम से कम 30 प्रतिशत या 33 प्रतिशत या 45 प्रतिशत अंक आएंगें तो ही पास माने जाएंगे। नीट की परीक्षा में ऐसा क्यों नहीं है? ऐसा क्यों है कि यहां 17 प्रतिशत, 19 प्रतिशत और 22 प्रतिशत वाला भी पास हो जाता है? उपलब्ध सीटों के 11 गुना या 13 गुना विद्यार्थियों को क्यों पास किया जाता है? और जब महज लगभग 1 लाख बच्चों को ही एडमिशन मिलना है तो बाकि 10 लाख जो क्वालिफाई हुए हैं, उन बच्चों का कौन मालिक है?
इसका जवाब में अमीर बनाम गरीब की लड़ाई है। पूरा सिस्टम ऐसा बनाया गया है कि जिनके पास खूब पैसा है, उनके लिए मेडिकल की पढ़ाई सीट खरीदकर पढ़ने जैसा मामला है। और जो गरीब हैं, उनके लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा है और उसके बाद भी वे डॉक्टरी के पेशे में नहीं आ सकते?

तो क्या सरकार ने यह सिस्टम अमीरों के समर्थन में बनाया है? गरीबों के लिए क्या है? क्योंकि 2012 तक ऑल इंडिया प्री मेडिकल टेस्ट यानी एआईपीएमटी के जरिये मेडिकल में एडमिशन होता था। 2013 में नीट यूजी की शुरुआत हुई और पहले इसका आयोजन सीबीएसई करता था। 2019 में नीट संचालन की जिम्मेदारी एनटीए को दी गई।

सरकारी मेडिकल कॉलेज में कम फीस
हम सभी जानते हैं सरकारी मेडिकल कॉलेजों में फीस कम लगती है। बहुत कम।

देश में मेडिकल की पढ़ाई 7 सेंट्रल यूनिवर्सिटी में होती है। इनमें 1180 सीटें हैं। और फीस पूरी पढ़ाई के दौरान औसतन 4 लाख रुपए से कम ही है।

देशभर में 382 सरकारी कॉलेज हैं और इनमें कुल 55225 सीटें हैं। और इसमें फीस सहित पढ़ाई का अन्य खर्च औसतन 6.20 लाख रुपए है। जिनके पास करोड़ों रुपए नहीं हैं और प्रतिभा संपन्न हैं, वे इसी 56405 सीटों के लिए फाइट करते हैं कि किसी तरह रैंक और नंबर अच्छे आ जाएं जिससे इन सीटों पर एडमिशन मिल जाए तो कम खर्च में पढ़ाई पूरी हो जाए।

तो इसका असल क्लाइमेक्स अब शुरू होता है-भारत में प्राइवेट कॉलेज से मेडिकल की पढ़ाई बहुत महंगी है। इसकी फीस और खर्च मिलाकर करोड़ों में है।

प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में करोड़ रुपए फीस
देश में 264 प्राइवेट मेडिकल कॉलेज हैं। इन कॉलेजों में 42,515 सीटें हैं और फीस व अन्य खर्च लगभग 78.82 लाख रुपए है। इसी तरह देश में 51 डीम्ड यूनिवर्सिटी हैं जिनमें मेडिकल के लिए 10,250 सीटें हैं और इन सीटों पर एक विद्यार्थी की फीस लगभग 1 करोड़ 22 लाख है। प्राइवेट मेडिकल कॉलेज और डीम्ड यूनिवर्सिटी में कुल 52,765 मेडिकल सीटें हैं और इनमें पढ़ाई का औसतन खर्च 78 लाख से सवा करोड़ के बीच है। इन सीटों पर एडमिशन लेकर पढ़ाई का खर्च क्या कोई सामान्य परिवार का विद्यार्थी उठा सकता है? जवाब है नहीं।

इन सीटों पर देश की सिर्फ 2 प्रतिशत आबादी के अमीर लोग ही खर्च उठाने में सक्षम हैं और यही वजह है कि एनटीए 11 या 13 गुना अधिक रिजल्ट जारी करता है ताकि प्राइवेट मेडिकल कॉलेज की ये सीटें खाली न रह जाए। और 19 या 22 प्रतिशत अंक पाकर भी बच्चे का एडमिशन हो जाए। तो बाकि बच्चों के लिए क्या विकल्प बचता है?

मजबूरी में कुछ विदेश से पढ़ाई तो जिनके पास बहुत अधिक पैसा नहीं है वे मेडिकल की पढ़ाई के लिए उन देशों का रुख करते हैं जहां यह कम पैसे में हो सके। भारतीय छात्रों के लिए एमबीबीएस की पढ़ाई करने के लिए कुछ लोकप्रिय और सबसे सस्ते देश जैसे चीन, जर्मनी, किर्गिस्तान, कजाकिस्तान और बांग्लादेश आदि हैं। इन देशों में पढ़ाई और रहने का खर्च अपेक्षाकृत कम है और अधिकांश भारतीय विश्वविद्यालयों की तुलना में सस्ता है।

विदेश में एमबीबीएस की पढ़ाई करने करने के लिए भारत से बड़ी संख्या में स्टूडेंट यूएसए, यूके, जर्मनी, रूस और यूक्रेन जाते हैं। पिछले दिनों जब रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू हुआ तो बड़ी संख्या में भारतीय छात्र यूक्रेन में फंस गए थे। रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच ऑपरेशन गंगा के तहत भारत लाए गए 18282 भारतीय छात्रों में ज़्यादातर मेडिकल छात्र थे। अब सवाल है कि मेडिकल शिक्षा में कौन से कदम उठाएं जाएं जिससे यह स्थिति सुधरे।

तो इसका सरल जवाब है कॉलेजों की संख्या बढ़ाई जाए, सीटें बढ़ाईं जाएं। सस्ती पढ़ाई की व्यवस्था की जाए तो संभव है। अब यह पूछा जा सकता है कि इस दिशा में हो क्या रहा है?

सरकार की ओर से जारी 12 दिसंबर 2023 के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार मेडिकल कॉलेजों में 82% की बढ़ोतरी हुई है। 2014 से पहले ये 387 थीं जो बढ़कर अब 706 हो गई हैं। इसके अलावा, 112% की बढ़ोतरी के साथ एमबीबीएस सीटें 51,348 (2014) से 1,08,940 (2023) हो गईं और 127% की बढ़ोतरी के साथ पीजी सीटें 31,185 (2014) से 70,674 (2023) हो गई हैं। तो क्या ये सीटें पर्याप्त है? जवाब है नहीं।

अभी इस दिशा में बहुत काम किए जाने की जरूरत है और केंद्र को सस्ती शिक्षा और सस्ती चिकित्सा लोगों को उपलब्ध कराने के लिए एम्स जैसे विश्वसनीय संस्थान, मेडिकल कॉलेज बनाने की जरूरत है, जिससे बड़ी संख्या में युवाओं की कड़ी मेहनत सार्थक हो सके और नीट में सीटों के लिए जिस तरह से पेपर लीक की घटना सामने आई है, उस पर रोक लगाई जा सके।

यही नहीं राज्यों में जो सीटों की असमानता है और 85 प्रतिशत स्टेट कोटा है, उस असमानता को भी दूर करने की जरूरत है। जैसे बिहार में 12 करोड़ से अधिक आबादी के लिए 13 सरकारी कॉलेजों में 1550 सीटें हैं वहीं तमिलनाडु के 38 सरकारी कॉलेजों में 5250 और महाराष्ट्र के 32 कॉलेजों में 5125 सीटें हैं। तमिलनाडु की आबादी लगभग 10 करोड़ और महाराष्ट्र की आबादी साढ़े तेरह करोड़ है। ये खाई राज्य सरकारों की कमी से बनी है। जिन सरकारों ने बेहतर काम किया उन्होंने सीटें बढ़ाई, लेकिन जिन्होंने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो आज फिसड़्डी दिख रहे हैं।

मैं सिर्फ एक उदाहरण बताता हूं, किसी रूट पर यदि एक ही ट्रेन चलती हो तो जाहिर है, उसमें अधिक भीड़ होगी, क्षमता से पांच गुना अधिक यात्री सवार होंगे। टिकटों की कालाबाजारी होगी। लेकिन यदि इंफ्रास्ट्रक्चर ऐसा हो कि वहां उसकी जगह 5 ट्रेनें चलाई जा सकें तो टिकटों की कालाबाजारी रूक जाएगी। टिकट आसानी से मिलेगा। लोगों के लिए यात्रा सुगम हो जाएगी।

मेडिकल विद्यार्थियों की यह यात्रा कब सुगम बनेगी? पढ़ाई की यह यात्रा सुगम बननी चाहिए कि नहीं?

देश को सरकारों से इस जवाब का इंतजार है!

Tuesday, July 14, 2015

मोरे की नजर में धोनी सर्वश्रेष्ठ विकेटकीपर


इंदौर। टीम इंडिया के पूर्व विकेटकीपर किरण मोरे के लिए धोनी नंबर वन विकेटकीपर हैं। लेकिन धोनी ने टेस्ट से संन्यास की घोषणा कर दी है तो उनकी जगह दावेदार कौन? जब यह पूछा गया तो उन्होंने कहा यह ओपन बाजी है। 4-5 दावेदार हैं, कोई भी टीम में हो सकता है। वे यहां होलकर स्टेडियम में एमपीसीए द्वारा आयोजित 5 दिवसीय कैम्प में मप्र के चुनिंदा खिलाड़ियों को विकेटकीपिंग के टिप्स देने आए हैं। भारत के लिए 49 टेस्ट खेलने वाले मोरे ने एक बातचीत में धोनी की जमकर तारीफ की। कहा धोनी अब तक के भारत के नंबर वन विकेटकीपर हैं। वे ऑलराउंडर हैं। 90 टेस्ट में 6 शतक बना चुके हैं। उन्होंने सभी फॉर्मेट में 500 से अधिक स्टंप्स किए हैं। टीम इंडिया का शानदार नेतृत्व किया है। मेरे लिए वे नंबर वन हैं। अब रहा सवाल दावेदार का तो टेस्ट में उनके बैकअप के रूप में नमन ओझा को भेजा गया था। रिद्धिमान साहा अनफिट थे। दिनेश कार्तिक, पार्थिव पटेल भी दावेदार हैं। संजू सैमसन अच्छी बल्लेबाजी भी कर रहे हैं। सभी का लेवल एक समान है। कोई भी टीम में आ सकता है। मुंबई इंडियंस के प्रदर्शन के सवाल पर आईपीएल में मुंबई इंडियंस टीम के साथ विकेटकीपिंग कंसल्टेंट के रूप में जुड़े मोरे ने मुंबई के प्रदर्शन पर संतोष जताया। उन्होंने कहा हमने पिछले मैच में राजस्थान को हराया है। हम जीत की राह पर लौटे तो क्वालिफाई कर सकते हैं। मुंबई ने अभी 8 में से महज 3 मैचों में जीत दर्ज की है। इनका मैच तो मैं पैसे देकर देखने जा सकता हूं 2002 से 2006 तक टीम इंडिया की चयन समिति के चेयरमैन रहे मोरे ने युवराज सिंह के हालिया फॉर्म का भी बचाव किया। उन्होंने कहा हर क्रिकेटर के लाइफ में एक टाइम आता है जब वह प्रदर्शन नहीं कर पाता। युवी के साथ भी ऐसा है। मैं उनका मैच देखने के लिए पैसे देकर जा सकता हूं। युवराज ने आईपीएल-8 के 8 मैचों की 7 पारियों में महज 124 रन बनाए हैं। उन्हें दिल्ली डेयरडेविल्स ने 16 करोड़ की भारी-भरकम राशि देकर खरीदा है। खो खो और क्रिकेट में से एक चुनना था, मैंने क्रिकेट चुना एनसीए में भी विकेटकीपिंग का टिप्स देने वाले मोरे पहले खो खो और क्रिकेट दोनों खेलते थे। उनके पास जब किसी एक खेल को चुनने की बारी आई तो उन्होंने क्रिकेट चुना। मोरे ने कहा मैं खो खो में स्टेट प्लेयर रहा हूं। मुझे जब क्रिकेट और खो खो में से चुनने को कहा गया तो मैंने क्रिकेट चुना। हालांकि खो खो फिटनेस के लिए बहुत अच्छा खेल है। कैम्प के बारे में उन्होंने कहा हम टेक्निक पर काम करेंगे। फिटनेस भी देखेंगे। हर विकेटकीपर का अपना स्टाइल होता है। हैंड पोजिशन क्या है? मोमेंट क्या है? देखने के बाद बताया जाएगा कि क्या सुधार की जरूरत है। भास्कर डॉट कॉम की खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें http://www.bhaskar.com/news/c-8-1145249-NOR.html

Thursday, May 21, 2015

युवी का चयन न होने से कोई फर्क नहीं : मल्होत्रा


इंदौर। वर्ल्ड कप के लिए चुनी गई भारतीय टीम में युवराज सिंह को शामिल नहीं किए जाने को भले ही कई पूर्व क्रिकेटरों ने चयनकर्ताओं की गलती करार दिया हो लेकिन पूर्व टेस्ट क्रिकेटर और बंगाल रणजी टीम के कोच अशोक मल्होत्रा इससे सहमत नहीं हैं। उन्होंने कहा है कि युवी को टीम में नहीं रखकर चयनकर्ताओं ने कोई गलती नहीं की है। टीम में जो खिलाड़ी शामिल हैं। हमें उनका समर्थन करना होगा। उन्होंने उम्मीद जताई कि टीम इंडिया जल्द ही अपने रंग में लौट आएगी और खिताब की रक्षा करेगी। अशोक मल्होत्रा बंगाल रणजी टीम के साथ इंदौर आए हैं। बंगाल टीम यहां होलकर स्टेडियम में 6 फरवरी से आरंभ अपने आखिरी ग्रुप मुकाबले में मेजबान मप्र का सामना कर रही है। 7 टेस्ट और 20 वनडे में टीम इंडिया का प्रतिनिधित्व करने वाले मल्होत्रा ने विराट कोहली की भी तारीफ की। उन्होंने कहा कोहली विराट खिलाड़ी हैं। उनका बैटिंग स्टाइल अच्छी है। टीम इंडिया की संभावना अच्छी : वर्ल्ड कप से पहले इंडिया टीम के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर खराब प्रदर्शन का भी उन्होंने बचाव किया। पूर्व चयनकर्ता ने कहा इंडिया टीम अच्छी संभावना है। मैं जानता हूं अभी बल्लेबाज रन नहीं बना पा रहे हैं। लेकिन ब्रिसबेन और पर्थ की पिचों में उछाल थी। वहां रन नहीं बने। लेकिन जब हमारी टीम एडिलेड, मेलबोर्न, सिडनी जाएगी तो खिलाड़ी अपने रंग में आएंगे। उन्होंने खिलाड़ियों के थके होने की बात से भी इनकार किया। उन्होंने कहा हमारे खिलाड़ी थके नहीं हैं। क्योंकि आधे से अधिक खिलाड़ियों ने एक-दो मैच ही खेले हैं। रणजी में बंगाल की संभावना पर उन्होंने कहा ये मैच क्वालिफाई करने के नजरिये से महत्वपूर्ण है। भास्कर डॉट कॉम की खबर के लिए क्लिक करें http://www.bhaskar.com/news/c-8-1096110-NOR.html

1974 में डेविस कप चूकने का आज भी मलाल है आनंद अमृतराज को


इंदौर। भारत पहली बार 1974 में डेविस कप टेनिस टूर्नामेंट के फाइनल में पहुंचा था और भारत के पास ट्रॉफी जीतने का सुनहरा मौका था। फाइनल में उसके सामने दक्षिण अफ्रीका की चुनौती थी। मैच भी वहीं था लेकिन भारत सरकार ने अफ्रीका के रंगभेद की नीति की वजह से उसका बहिष्कार किया। भारत मैच खेलने नहीं जा सका और अफ्रीका विजेता रहा। उस भारतीय डेविस कप टीम के सदस्य रहे आनंद अमृतराज को आज भी इस बात का मलाल है। वे इंदौर टेनिस क्लब में दो दिवसीय ट्रेनिंग शिविर में खिलाड़ियों और कोच को प्रशिक्षण देने आए हैं। इस दौरान उन्होंने टेनिस से जुड़े हर सवाल का बेबाकी से जवाब दिया। उनसे जब पूछा गया कि भारत विंबलडन सिंगल्स में कब चैंपियन बनेगा तो वे पहले हंसे। फिर बोले - अभी मुश्किल है। बहुत समय लगेगा। फिर कहा, भारतीय खिलाड़ियों को पहले अपनी रैंकिंग सुधारनी होगी। भारत के नंबर वन खिलाड़ी सोमदेव की रैंकिंग दुनिया में 155 है। पहले हमें टॉप-100 में और फिर टॉप-50 में आना होगा। फिर अब शीर्ष 10 में आने और चैंपियन बनने की सोच सकते हैं। भारतीय टीम 1987 में दूसरी बार जब डेविस कप फाइनल में पहुंची तब भी आनंद अमृतराज टीम के सदस्य थे। तीन भाईयों में सबसे बड़े आनंद ने डबल्स के प्लेयर के रूप में भारत की पहचान बनाई। उनके समय से चली आ रही डबल्स की परंपरा अब भी चली आ रही है। करियर में 12 खिताब जीतने वाले आनंद ने मप्र के 40 कोचों को ऑन द कोर्ट और ऑफ द कोर्ट ट्रेनिंग दी। टेनिस के अलावा उन्होंने इक्यूपमेंट के बारे में भी बताया कि कितना महत्वपूर्ण रोल रहता है। शुक्रवार को 20 बच्चों को ट्रेनिंग दी गई। शनिवार को भी 20 बच्चों ने इस अभ्यास सत्र में हिस्सा लिया। इनकी उपस्थिति से बच्चे प्रेरित हो रहे हैं। भारतीय खिलाड़ी डबल्स ही क्यों खेलते हैं? जब उनसे यह पूछा गया तो उन्होंने कहा आप स्पेनिश और फ्रेंच प्लेयर को देख लीजिए। वे कोर्ट पर कितना तेज होते हैं। स्पेन, फ्रांस, चेक रिपब्लिक के खिलाड़ी एकल में अच्छे हैं। हमारे खिलाड़ी डबल्स में अच्छे हैं। एकल में नहीं। इसकी दो वजह है। एक तो भारत के खिलाड़ी को-ऑर्डिनेशन में अच्छे होते हैं। दूसरा डबल्स में उतनी तेजी नहीं दिखानी पड़ती। जितनी सिंगल्स मों चाहिए होती है। डबल्स में आपको सिर्फ आधे कोर्ट को कवर करना होता है। हमारे खिलाड़ियों की फिटनेस अच्छी होनी चाहिए। मैराथन दौड़ने की क्षमता होना चाहिए। कोच में क्या खूबी हो? बॉयज और गर्ल्स के लिए परफेक्ट कोच होना भी जरूरी है। जो उन्हें मोटिवेट कर सके और गेम को एंजॉय करे और एंजॉय करना सिखा सके। खेल को इंट्रेस्टिंग बना सके और जिसमें बच्चों के लिए ज्यादा फन हो। जुलाई में होने वाले डेविस कप मुकाबले के बारे में जुलाई में न्यूजीलैंड के क्राइस्टचर्च में होने वाले भारत के डेविस कप मुकाबले के बारे में उन्होंने कहा हमें उम्मीद है हमारा प्रदर्शन बेहतर रहेगा। हमें पहले आशा थी कि चीन से खेलेंगे। क्योंकि चाइना न्यूजीलैंड से खेल रहा था। लेकिन न्यूजीलैंड ने अच्छा प्रदर्शन किया। न्यूजीलैंड को होम ग्राउंड का एडवांटेज रहेगा लेकिन हमारे खिलाड़ी अच्छे फॉर्म में हैं। हम अच्छा प्रदर्शन करेंगे। पिछले साल हमने चीनी ताइपे के खिलाफ अच्छा प्रदर्शन किया। कोरिया के खिलाफ भी ठीक खेले। लेकिन आगामी डेविस कप मुकाबले के लिए लिएंडर पेस के वापसी की अभी कोई संभावना नहीं है। और सफल होंगी सानिया 36 साल के आनंद काफी फिट हैं। उन्होंने सानिया मिर्जा के प्रदर्शन की तारीफ की। उन्होंने कहा सानिया के लिए पिछला साल काफी अच्छा रहा था। उन्होंने सिंगापुर और ऑस्ट्रेलियन ओपन में खिताब जीता था। इंचियोन एशियन गेम्स साकेत मिनेनी के स्वर्ण पदक जीतने में कामयाब रही। इस साल की शुरुआत भी काफी अच्छी हुई है। अपने नए मिक्स्ड डबल्स पार्टनर स्विट्जरलैंड की मार्टिना हिंगिंस के साथ अब तक दो खिताब जीत चुकी हैं। वे और सफलता हासिल करेंगी। भास्कर डॉटकॉम पर खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें