ग्राम पंचायत चुनाव स्थानीय स्तर की राजनीति का नायाब उदाहरण होता है लेकिन कुछ लोग इसे भी अपने लिए मौका मानकर भुना लेते हैं। सुटाई ने भी इसे भुनाया लेकिन कैसे?
ग्राम पंचायत चुनाव का वर्ष आने वाला था और इसकी धमक दिसंबर में ही दिखने लगी थी। गांव के घरों के बरामदे में, दीवार पर, बिजली के खंभों पर, स्कूल की दीवार पर और यहां तक हर उस जगह पर जहां पोस्टर चिपकाने की जगह थी, वह जगह नूतन वर्ष की मंगल कामनाओं के संदेशों से पट गई। संदेश की कुछ खास बातें थी मसलन केंद्रीय राजनीति में जैसा बताया जाता है ठीक उसी तरह पचपन वर्षीय मोटू तिवारी ने खुद को युवा नेता बताया था। पंचायत की सीट महिला के लिए आरक्षित थी। इसलिए पोस्टर पर मोटू तिवारी फोटो छोटी और उनकी पत्नी की तस्वीर उनसे डबल साइज में छपी थी। छापाखाना वाले ने मोटू तिवारी को दुबला और भावी प्रत्याशी सुंदर दर्शाया था। शायद यह चुनाव में युवाओं को आकर्षित करने के ख्याल से किया गया था।
ऐसे ही एक और पोस्टर था सुटाई राय का। सुटाई सचमुच युवा थे लेकिन वे नेता नहीं थे। फिर भी उन्होंने अपने पोस्टर पर युवा नेता का आम जुमला जोड़ दिया था। गांव के लंगड़ा और गबरू ने पोस्टर देखा था और शाम को पहुंच गए थे सुटाई से मिलने।
पूछ बैठे, क्यों भाई, चुनाव लड़ने जा रहे हो क्या?
पोस्टर लगवा दिया है। आखिर माजरा क्या है?
तुम्हें तो अपने मुहल्ले को छोड़कर और कोई जानता भी नहीं है। आखिर तुम ठहरे परदेशी आदमी साल भर बाद कुछ कमाकर आए तो पोस्टर छपवा दिया। चुनाव लड़ने का भूत कहां से आया।
सुटाई ने राज की बात बताई। कहा- देखो लंगड़ा तुम तो जानते ही हो। मैं साल भर बाद आया हूं और मैं ठहरा बहीर आदमी और मैं चाहता हूं कि मेरी शादी हो जाए तो पोस्टर अच्छा बहाना था। मैंने छपवा दिया है। उस पर मेरी फोटो है, लोग देखेंगे, चर्चा करेंगे। हो सकता है, मेरा निशाना ठीक बैठ जाए और बात पक्की हो जाए।
पोस्टर का असर हुआ। गांव में पोस्टर की चर्चा हुई और साथ ही चर्चा हुई अपना बहीरा सुटाई चुनाव लड़ने वाला है। अन्य प्रत्याशियों ने भी उससे संपर्क साधा और साथ ही उससे मिलने पहुंचे विवाह कराने में सिद्धहस्त पृथ्वी चौधरी। उन्होंने सुटाई से उसकी डिमांड पूछी और फिर योग्य वधू के लिए अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाए। दिमाग ने बिजली की करंट की रफ्तार से तुरंत एक छोर से दूसरे छोर तक दौड़ लगाई। साथ ही किसी कम्प्यूटर के सर्च ऑप्शन की तरह क्लिक करके उन्होंने पांच-सात नाम गिना डाले। फलां-फलां जगह लड़कियां है। सुटाई की भी लह गई। तीर निशाने पर लगा था। महज दो हफ्ते की मेहनत में पृथ्वी ने सुटाई की शादी तय करा दी।
उधर, प्रत्याशियों ने भी सुटाई से संपर्क कर उसके चुनाव लड़ने की संभावना का पूरा गणित लगाया। सुटाई ने भी अपना भाव टाइट किया। कहा देखो भाई मैं तो चुनाव पूरे मन से लड़ना चाहता हूं। मेरी बिरादरी की बात है। मैं उनका नेता बनूंगा। यह बात भी उसके सुटाई के खासमखास परमा ने जयघोष के साथ सुना दी। सुटाई अब हमारी बिरादरी का नेता बनेगा और इससे सबसे बड़ा खतरा नजर आया उनकी ही बिरादरी के एक अन्य नेता गेंदालाल को। उन्होंने सुटाई से सेटिंग की बात के लिए अपना दाहिना हाथ माने जाने वाले होरी को भेजा। होरी ने जाकर सुटाई से बात की। सुटाई ने अब पूरी और सच्ची बात खुलकर बताई। कहा देखो भाई गेंदालाल से जाकर कह दो पोस्टर छपवाने का जो खर्चा लगा है वही मिल जाए तो बात आई-गई हो जाएगी। और हुआ भी यही। सुटाई को पोस्टर छपवाने में लगा खर्च मिला और उसके चुनाव लड़ने की बात रात के सपने जैसे बात हो गई।
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