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Tuesday, July 14, 2015
मोरे की नजर में धोनी सर्वश्रेष्ठ विकेटकीपर
Thursday, May 21, 2015
युवी का चयन न होने से कोई फर्क नहीं : मल्होत्रा
1974 में डेविस कप चूकने का आज भी मलाल है आनंद अमृतराज को
Wednesday, August 3, 2011
प्रेरक कलाम- “आई एम कलाम”
पिछले दिनों बच्चों पर केंद्रीत फिल्म चिल्लर पार्टी और उसके पहले स्टेनली का डिब्बा चर्चा में रही। इस सूची में एक और नाम है- ‘आई एम कलाम’। नील माधव पंडा द्वारा निर्देशित इस फिल्म को पहले ही कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं।
फिल्म की कहानी राजस्थान के एक गरीब परिवार के बच्चे छोटू (हर्ष मायर) के इर्द-गिर्द घूमती है। गरीबी की वजह से बच्चे की मां (मीना मीर) उसके लिए काम की तलाश करती है और छोटू को भाटी मामा (गुलशन ग्रोवर) के ढाबे पर काम करने के लिए छोड़ जाती है। बच्चा आते ही ढाबे के मालिक के ऊंटनी के पैर का जख्म जड़ी-बूटियों की मदद से ठीक कर देता है। भाटी बच्चे के काबिलियत से खुश होता है लेकिन छोटू को लैप्टन (पितोबास) के अधीन काम करना होता है और वह उस पर हुकुम चलाना चाहता है। लैप्टन अमिताभ का फैन है लेकिन जब रात को सोने की बारी आती है तो वह छोटू को बाहर सोने को कहता है। छोटी अपनी समझदारी से उसकी खाट पर सो रहा होता है और लैप्टन खाट के नीचे। क्योंकि छोटू की मां भी कहती है “उसका दिमाग रेल भी तेज चलता है।”
भाटी के ढाबे के पास एक महल है जिसके आधे हिस्से में एक राजपरिवार रहता है और आधा हिस्सा हैरिटेज होटल के रूप में है। होटल में रहने वाले लोगों के लिए खाना-नाश्ता भाटी के ढाबे से जाता है। छोटू को होटल में खाना पहुंचाने का जिम्मा मिलता है। इसी दौरान छोटू राजपरिवार के इकलौते प्रिंस रणविजय (हुसैन साद) से दोस्ती करता है।
एक दिन छोटू टेलीविजन पर गणतंत्र दिवस की परेड देख रहा होता है और वह अब्दुल कलाम को देखता है। वह उनसे प्रभावित होता है और अपना नाम कलाम रख लेता है। वह राष्ट्रपति से मिलना चाहता है। ढाबे पर आने वाली एक फ्रांसिसी महिला लूसी (बिट्राइस ऑरडिक्स) से भी छोटू दोस्ती करता है और उससे फ्रेंच सीखता है। वह प्रिंस से पढ़ना सीखता है और बाद में प्रिंस के लिए एक भाषण लिखता है। उस भाषण पर प्रिंस को पुरस्कार मिलता है लेकिन पैलेस के कारिंदे कलाम के कमरे की तलाशी लेकर प्रिंस के कपड़े-किताबें पाकर उसकी पिटाई करते हैं, उसे चोर घोषित करते हैं और उसे यहां से दूर चले जाने का फरमान सुनाया जाता है।
छोटू एक ट्रक पर सवार होकर दिल्ली पहुंचता है और राष्ट्रपति से मिलना चाहता है। उसे गार्ड इंट्री नहीं देते हैं। उधर जैसे ही प्रिंस को छोटू के चले जाने की बात पता चलती है, वह अपने पिता को बताता है कि छोटू चोर नहीं है, और सारी चीजें उसने खुद दी थी। प्रिंस के पिता को गलती का एहसास होता है और लूसी मैडम के साथ प्रिंस छोटू को खोजने दिल्ली पहुंचता है। छोटू इंडिया गेट के पास मिल जाता है। उसे वापस लाया जाता है और छोटू भी प्रिंस के स्कूल में पढ़ने लगता है।
हर्ष मायर ने फिल्म में छोटू की भूमिका में जान डाल दी है। संजय चौहान के डॉयलाग्स राजस्थानी बोली में खासे प्रभावी हैं। सत्तासी मिनट की फिल्म में संदेश है- कर्म और किस्मत के द्वंद्व के बीच कर्म बड़ा होता है। हर बच्चा बड़े सपने देख सकता है। यह फिल्म ढाबे में काम करने वाले उन हजारों बच्चों का प्रतिनिधित्व करती है जो गरीबी की वजह से पढ़ाई नहीं कर पाते और उनके लिए प्रेरणास्रोत कलाम जैसा व्यक्तित्व होता है। स्माइल फाउंडेशन की इस शानदार प्रस्तुति में एक-एक पात्र अपने चरित्र के साथ न्याय करते दिखते हैं।
Thursday, July 21, 2011
छोटे शहरों में एफएम का तराना
मिथिलेश कुमार
केंद्र सरकार ने एफएम रेडियो को छोटे शहरों तक पहुंचाने के लिए लाइसेंस देने को हरी झंडी दे दी है। एफएम के विस्तार के तीसरे चरण में 227 शहरों में 839 नए एफएम स्टेशन खुलेंगे, जिसके लिए बोली लगाने का प्रस्ताव है। फिलहाल देश के 86 शहरों में 248 एफएम स्टेशन हैं। छोटे शहरों में एफएम का विस्तार क्या मायने रखता है? एफएम का दायरा बढ़ाने के क्या फायदे होंगे? और क्या छोटे शहरों में एफएम के लिए कुछ चुनौतियां भी होंगी?
हाल ही में कैबिनेट की बैठक में सूचना प्रसारण मंत्रालय के ‘निजी एजेंसियों के जरिए एफएम रेडियो प्रसारण सेवाओं के विस्तार संबंधी नीतिगत दिशा निर्देशों के तीसरे चरण के प्रस्ताव’ को मंजूरी दी गयी है, उसमें दो बातें प्रमुख है। पहली, एफएम को तीसरे चरण में एक लाख तक की आबादी वाले शहरों तक पहुंचाया जाएगा। दूसरी, एफएम रेडियो को आकाशवाणी के समाचार प्रसारण की अनुमति दे दी गयी है। इन निर्णयों का क्या असर होगा?
एफएम के तीसरे चरण के विस्तार में एक लाख की आबादी वाले वे शहर शामिल हैं, जो जिला या छोटे शहर होंगे। फिलहाल देश में 606 जिले और 5161 शहर हैं लेकिन इनमें से 514 जिलों में अभी एफएम नहीं है। क्या उन्हें मनोरंजन के साधन के रूप में एफएम की सुविधा का हक नहीं है? क्या सिर्फ बड़ी आबादी वाले शहरों के लोगों को ही एफएम की सुविधा मिलनी चाहिए? अब तक मेट्रो और बड़े शहरों में खुले एफएम के क्या मायने हैं? क्या इसका एक संदेश यह है कि यदि आपको एफएम सुनना है तो बड़े शहर में रहना होगा?
एमएफ के तीसरे चरण का विस्तार काफी हद तक इस भेदभाव को दूर करने में कामयाब होगा। तब एफएम के मनोरंजन की धुनें छोटे शहरों से होते हुए गांवों तक भी पहुंचेंगी और तब महानगरों के मेट्रो में, बस स्टॉप पर मोबाइल पर एफएम का मजा लेते लोगों या कार में बजते एफएम की तरह यह गांव की चौपाल तक दस्तक देगा। यह एफएम के लिए अगली क्रांति होगी। क्योंकि 10वीं पंचवर्षीय योजना (2002-07) के दौरान ही एफएम को देश की 60 प्रतिशत जनता तक पहुंचाने का लक्ष्य था लेकिन 11वीं योजना के दौरान भी यह महज 40 प्रतिशत लोगों तक ही पहुंच सका है। 294 शहरों में एफएम के विस्तार के साथ ही अनुमान है कि एफएम की पहुंच देश की 90 प्रतिशत आबादी तक हो जाएगी क्योंकि देश की 75 प्रतिशत जनसंख्या 33 फीसदी जिलों में रहती है। इसका मतलब है कि तीसरे चरण में एफएम बड़ी आबादी तक पहुंच बनाने में कामयाब होगा। एफएम में ऐसा क्या है जो अन्य माध्यमों से अलग बनाता है और गांवों तक इसकी पहुंच होनी जरूरी है?
संचार के माध्यमों में रेडियो एक ऐसा अनूठा माध्यम है, जिसकी अपनी विशेषताएं हैं और इस वजह से यह मनोरंजन, सूचना और शिक्षा का बेहतरीन माध्यम है। ऐसे में एफएम पर समाचारों के प्रसारण की अनुमति देना भी इसके दायरे को विस्तृत करेगा। एफएम रेडियो एक ऐसा माध्यम है, जिसमें ग्रासरूट लेवल तक पहुंच की क्षमता है। यह माध्यम अपनी विशेषताओं की वजह से वहां पहुंच सकता है, जहां अखबार और टीवी की पहुंच नहीं है क्योंकि इसके लिए आपको टीवी और अखबार की तरह अतिरिक्त खर्च नहीं करना पड़ता। तो उम्मीद करें कि तीसरे चरण का एफएम विस्तार जैसे ही पूरा होगा, छोटे शहरों यानी डी ग्रेड शहरों में एफएम की पहुंच होगी। यह एफएम रेडियो के लिए संजीवनी का काम करेगा, क्योंकि तब एफएम बिहार में पटना और मुजफ्फरपुर से निकलकर छपरा और सिवान में भी पहुंचेगा। छत्तीसगढ़ में यह रायपुर से बाहर निकलकर दुर्ग, भिलाई, कोरबा और राजगढ़ में भी पहुंचेगा और सब कुछ योजनानुसार हुआ, तो शहरों में भी तीन तीन नये एफएम स्टेशन खुलेंगे यानी सूचना और मनोरंजन के इस माध्यम के लोकतंत्रीकरण की यह अगली प्रक्रिया होगी। तो क्या एफएम का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ मनोरंजन होना चाहिए या इसके इतर भी इसकी भूमिकाएं हो सकती हैं?
एफएम अपनी साफ और स्पष्ट आवाज की वजह से शॉर्ट वेब और मीडियम वेब की तुलना में अनूठा है। सरकार ने एफएम पर समाचारों के प्रसारण की अनुमति दे दी है लेकिन उन्हें सिर्फ आकाशवाणी के समाचारों के ही प्रसारण की अनुमति है। इस सीमा को भी और विस्तार देने की जरूरत होगी क्योंकि आकाशवाणी भी अधिकांश खबरों के लिए पीटीआई और यूएनआई जैसी एजेंसियों पर निर्भर है तो एफएम के लिए सिर्फ आकाशवाणी का दायरा क्यों रखा गया है? पहले भी ट्रैफिक अपडेट, अंतरराष्ट्रीय खेलों के परिणाम जैसे क्रिकेट मैच के स्कोर आदि को सूचना प्रसारण मंत्रालय ने समाचार की श्रेणी से अलग रखा था और इनके प्रसारण पर प्रतिबंध नहीं था। अब एफएम पर कुछ जरूरी सूचनाओं को भी समाचार और करेंट अफेयर्स से अलग रखा गया है। खेल आयोजनों की कमेंट्री और इससे जुड़ी सूचना, यातायात तथा मौसम से संबंधित जानकारी, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, उत्सवों, परीक्षाओं, परिणामों, पाठ्यक्रमों में प्रवेश, करियर मार्गदर्शन, रोजगार अवसरों की उपलब्धता और स्थानीय प्रशासन द्वारा मुहैया करायी जाने वाली बिजली-पानी की आपूर्ति, प्राकृतिक आपदाओं और स्वास्थ्य संदेश संबंधी जानकारियों को गैर-समाचार तथा सामयिक मामलों की प्रसारण श्रेणी में रखा गया है। यह एफएम के लिए स्थानीय स्तर पर बेहद जरूरी है। तो फिर एफएम संचालन में समस्या क्या होगी?
एफएम के तीसरे चरण के तहत लाइसेंसों की नीलामी के जरिये सरकार को 1,733 करोड़ रुपये का राजस्व मिलने की उम्मीद है और यह 1200 करोड़ की वर्तमान रेडियो इंडस्ट्री में महत्वपूर्ण विकास होगा। फिलहाल विज्ञापन बाजार में रेडियो की हिस्सेदारी महज 5 प्रतिशत है। तीसरे चरण के विस्तार के बाद इसमें 2 प्रतिशत बढ़ोत्तरी की संभावना है। छोटे शहरों में एमएम चलाने के लिए राजस्व जुटाना एक बड़ी चुनौती होगी लेकिन तीसरे चरण के तहत निजी एफएम चैनलों को उनके प्रसारण तंत्र के तहत नेटवर्किंग की अनुमति देकर लागत कम करने की कोशिश की गयी है। तब भी एफएम के तीसरे चरण का विस्तार रोजगार के कुछ अवसर उपलब्ध कराएगा।
मोहल्ला लाइव में छपे इस लेख की लिंक
Friday, July 15, 2011
विरोध का अनूठा तरीका
यह तस्वीर है तमिलनाडु के शहर नागरकोईल की जहां यह व्यक्ति कलेक्ट्रेट परिसर में बैठा भीख मांग रहा है। इस सिविल इंजीनियर ठेकेदार ने अपने पास लगाई तख्ती पर लिखा है कि -पंचायत यूनियन असिस्टेंट एक्सीक्यूटिव इंजीनियर को घूस देने के लिए कृपया भीख दें।
बाद में इस ठेकेदार को पुलिस पकड़कर ले गई और उससे रिश्वत मांगने वाले अधिकारी के बारे में पूछताछ की गई। ठेकेदार ने पुलिस को बताया कि मालागुमदू गांव में 45000 रुपए का एक सड़क काम उन्होंने पूरा किया और उसका बिल प्रस्तुत किया, जो पिछले एक महीने से रिश्वत न देने की वजह से अटका हुआ है।
रिश्वत का विरोध के इस अनूठे तरीके पर ठेकेदार ने कहा उसके पास और कोई रास्ता नहीं था। उन्होंने कहा मैंने अपना काम पूरा किया है और सड़क की गुणवत्ता का ध्यान रखा है। इसमें मुझे मामूली राशि का मुनाफा होगा। उसमें से भी मैं इन अधिकारियों को क्यों दू? इस ठेकेदार ने हाल ही में कन्याकुमारी के जिला पुलिस अधीक्षक से भी पूछा था कि केरल की एक लड़की के यौन शोषण के आरोपी उस विशेष शाखा निरीक्षक का भी पता लगाया जाना चाहिए जो मीडिया में कथित रिपोर्ट आने के बाद फरार है।
Thursday, July 14, 2011
संकट में मर्डोक का साम्राज्य
यह बढ़ते चौतरफा दबावों का नतीजा है कि मीडिया मुगल रूपर्ट मर्डोक की कंपनी को बैकफुट पर आना पड़ा है। मर्डोक ने सेटेलाइट ब्रॉडकास्टिंग कंपनी ब्रिटिश स्काई ब्रॉडकास्टिंग (बीस्काईबी) के अधिग्रहण की दौड़ से अलग होने का फैसला किया है। उनकी कंपनी ने बीस्काईबी के अधिग्रहण के लिए 12 अरब डॉलर की बोली लगाई थी। उन्हें लगा था कि फोन टैपिंग के कारण विवाद में आए न्यूज ऑफ द वर्ल्ड को बंद करने से उनकी समस्याएं समाप्त हो जाएंगी लेकिन उनकी कंपनी न्यूज कॉरपोरेशन पर संकट के बाद अभी भी टले नहीं है। ब्रिटिश सरकार ने फोन टैपिंग सहित पूरे मामले की जांच के लिए जज ब्रायन लेवेजन के नेतृत्व में एक टीम बना दी है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने यह चेतावनी भी दी है कि मर्डोक की संस्था का कोई सदस्य गलती करने का दोषी पाया गया तो जीवन भर ब्रिटिश मीडिया से नहीं जुड़ पाएगा। ब्रिटेन के संसद के सत्ता पक्ष और विपक्ष ने एकजुट होकर इस मामले में मर्डोक, उनके बेटे जेम्स और न्यूज ऑफ द वर्ल्ड के पूर्व संपादक को समन भेजकर जिस प्रकार का रूख अख्तियार किया है उसके बारे में मर्डोक ने सपने में भी नहीं सोचा होगा। क्योंकि ये वही मर्डोक हैं जिनका समर्थन पाने के लिए पक्ष और विपक्ष सभी में होड़ लगी रहती थी। कटघरे में खड़े न्यूज कॉर्प के लिए इस झटके से उबर पाना आसान नहीं होगा और हो सकता है इस विवाद से पीछा छुड़ाने में ही मर्डोक का नाम और विवादों में भी सामने आए। अमेरिकी सांसदों ने इस बात के जांच की मांग की है कि कहीं अमेरिकी लोगों के भी तो फोन टेप या हैक तो नहीं किए गए। यही नहीं मर्डोक अपने बाकी के अखबारों को भी बेचने का भी मन बना रहे हैं। मीडिया के लिए स्तरहीन मानक स्थापित करना और निजता में दखल कहीं मर्डोक के मीडिया साम्राज्य के पतन की शुरुआत का कारण तो नहीं बन जाएगा।