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Friday, March 14, 2025

 


यह असंभव को संभव करने की कहानी है..


क्या आप सोच सकते हैं। 120 किमी की बाइक यात्रा हो, इतने लंबे रास्ते में कहीं बाइक की चाबी गिर जाए। उस चाबी के गुच्छे में 4 और चाबियां हो, और आखिर में वह मिल जाए। यह चाबी गुम होने और रोमांचक तरीके से मिल जाने की कहानी है। 


पटना में नौकरी के दौरान देर रात 2 बजे तक ऑफिस से छुट्‌टी होती थी। होली के अवसर पर दो दिन की छुट्टी होती थी। मैंने प्लान किया कि सुबह जल्दी निकल जाएंगे। पर जब सुबह जगे तो घड़ी में 8 बज रहे थे। 


बाइक स्टार्ट किया और निकल पड़े। होली के दिन सड़क पर भीड़ कम होती है। सड़क लगभग खाली होती है। वैसी जैसी कोरोना के दौर में लॉकडाउन के दौरान हुआ करती थी। होली के अवसर पर दुकानें, बाजार बंद रहते हैं। बाजारों पर लगने वाला जाम नदारद रहता है। इक्का–दुक्का मुर्गा और बकरी का मांस बेचने वाले दुकाने खुली रहती हैं और वहीं थोड़े से लोग दिखते हैं। सार्वजनिक परिवहन का कोई साधन नहीं रहता है। मेन रोड पर ट्रक भी नहीं चलते। 


खाली सड़क पर गाड़ी चलाना आम तौर पर आसान होता है। 


मैं भी चल पड़ा और 120 किमी की दूरी बिना रूके 2 घंटे में तय कर ली। मैं ठीक 10 बजे अपने घर पहुंच गया। घर पर बच्चे बाल्टी में पानी और पानी में रंग डालकर पिचकारी में भर रहे थे। एक–दूसरे पर डाल रहे थे। बाइक जब पहुंची और गाड़ी बंद करने के लिए चाबी पर हाथ गया तो होश उड़ गए। चाबी रास्ते में कहीं गिर गई थी। 


गाड़ी को क्लच अचानक छोड़कर बंद कर सकते थे लेकिन गाड़ी बंद नहीं की। उसे न्यूट्रल किया। गाड़ी स्टार्ट रहने दी। मुझे लगा कि चाबी कहीं आसपास ही गिरी होगी। चलकर देखते हैं। 


सिर्फ एक बाइक की चाबी होती तो छोड़ भी देते। ढृंढने की जहमत न उठाते। लेकिन उस चाबी के गुच्छे में 4 चाबियां और थी। 


अब मैं सोच में पड़ गया। करूं तो करूं क्या?


जल्दी तो आ गया था पर चाबी खो गई थी। 


सिर्फ एक बाइक की चाबी हो तो मैं उसके बारे में ना सोचता क्योंकि बाइक की चाबी दूसरी बना लूंगा या उसका ताला बदल दूंगा लेकिन उस चाबी के गुच्छे में 4 और चाबी थी। 


एक बाइक की, दूसरी में मेन गेट की, जहां मैं रहता था। उसके बाद घर में लगने वाले तालों की और एक अलमारी की।


मतलब मेरे पास चार और ताले और एक बाइक की चाबी। मतलब पांच चाबियां एक साथ खो गई थी।


पांच ताले में से कम से दो तोड़ना, यह पहाड़ सा काम लग रहा था।


यह कैसे हो पाएगा, यह सोचकर गाड़ी बंद नहीं की थी। मैंने गाड़ी वापस मोड़ी।


एक बच्चा जो होली खेलने में मशगूल था, उससे कहा– इधर आओ। मेरे साथ चलो। 


मैंने गाड़ी पर उसे बिठाया। किसी को बिना कुछ बताए, मैं वापस चल पड़ा। 


यह कोई और दिन होता तो चाबी ढृंढने का ख्याल बिलकुल नहीं आता लेकिन चूंकि होली का दिन था, रास्ते पर लोग नहीं थे। इसलिए यह सोचकर चल पड़े कि देखते हैं क्या होता है? 


हालांकि 120 किमी में चाबी कहां गिरी होगी, इसका कोई अंदाजा न था। लेकिन ये जरूर लग रहा था कि चाबी किसी स्पीड ब्रेकर के पास गिरी होगी। 


मैंने बच्चे से कहा– मैं बांयी तरफ देखता चल रहा हूं। तुम दायीं तरफ देखो। ब्रेकर के पास खासतौर पर गाड़ी की रफ्तार बिलकुल धीमी करके चलते जा रहे थे। जहां भी संभावना थी वहां लोगों से पूछा भी, कि यहां कोई चाबी गिरी हुई मिली है क्या? 


जवाब ना में मिलता गया। 


हम आगे बढ़ते गए। 10 किमी के बाद 20 किमी का रास्ता पूरा हो गया। चाबी न मिली।


एक चाय के दुकान के बाद खतरनाक ब्रेकर बना था। वहां एक आंटी दुकान में बैठी थी। उनसे पूछा– यहां कोई चाबी गिरी मिली है क्या? 


उन्होंने कहा– आज तो नहीं मिली है। लेकिन ये पहले कभी दो चाबियां यहां गिरी हुई मिली हैं, देखिए शायद इसमें से आपके कोई काम आ जाए। 


उसमें एक स्प्लेंडर और एक पैशन की चाबी थी। वह काम न आई। मैंने उनको चाबी वापस किया। और कहा ये रखिए। हाे सकता है– कोई मेरी तरह चाबी खोजता हुआ आ जाए। तो उसे वापस कर दीजिएगा। 


हम आगे बढ़ चले। 


30 किमी पूरा हो गया। पिछली सीट पर बैठे बच्चे का भिंगा हुआ शर्ट, पैंट, गंजी सब सूख गया था। 

उसे प्यास लग आई थी। एक जगह रूककर चापाकल पर पानी पिया और अब लगा कि चाबी नहीं मिलेगी। वापस चलना चाहिए। क्योंकि अभी 90 किमी का रास्ता बचा था और चाबी मिलने की उम्मीद खत्म हो गई। 


हम वापस चल पड़े। 


पहले हमने बायीं तरफ के घर वाले या कहीं कोई दिख रहा था तो पूछा था। अब हम वापसी में दायीं तरफ के लोगों के वही प्रक्रिया दोहरा रहे थे। चाबी मिलने की उम्मीद कम थी लेकिन हमें उसी उत्साह के साथ चाबी के बारे में पूछताछ जारी रखी।


एक घर के पास टर्न था। वहां एक गुमटी में रंग–गुलाल, पिचकारी बिक रहा था। 


हम वहां रूके और पूछा यहां कोई चाबी गिरी हुई मिली है। 


व्यक्ति ने जवाब दिया– हां।


ऐसे लगा जैसे जान में जान आ गई हो। एक साथ उम्मीद की हजारों किरणें दिखाई देने लगी। 


आदमी ने कहा– हां, चाबी का गुच्छा था। एक 4 साल का बच्चा यहीं खेल रहा था। उसे मिला है। 

मैंने कहा– बच्चे को बुला दीजिए। 


बच्चे को ढ़ूंढने लगा। बच्चा नहीं मिल रहा था। पता नहीं कहां चला गया। 


कई लोग और आ गए। 

सबने कहा– बच्चा तो अभी यहीं था। पता नहीं किधर चला गया। 


तभी एक लड़की आई। उसने कहा– बच्चा चाबी अपनी जेब में रखे हुए था। अभी वह खेत की तरफ गया है। अभी बुलाती हूं। थोड़ी देर में लड़की उस बच्चे के साथ वापस आई। 


उसने वह चाबी का गुच्छा बच्चे से लेकर मुझे दिया। यह मेरी चाबी थी। 


हमारी खुशी का ठिकाना न रहा। अब साढ़े ग्यारह बज गए थे। 


हमने वहां सबको धन्यवाद दिया। बच्चे को दुकान से कुछ उपहार दिए और खुशी से चल पड़े। 


घर पहुंचकर जब पूरा वृतांत सुनाया तो लोगों को भरोसा नहीं हो रहा था। 


लोग कहने लगे- यह तो असंभव… संभव हुआ है।