थोड़ी देर पहले तक ताकतवर लगने वाला एक आदमी इतना कमजोर साबित हुआ जिसका अंदाजा उसे भी नहीं रहा होगा। आखिर क्या हुआ उसके साथ,
वह बरौनी ग्वालियर मेल का स्लीपर क्लास था और ट्रेन कानपुर में खड़ी हुई। गाड़ी खाली थी और यहां रूकते ही कुछ लोग चढ़े और इस डिब्बे के लगभग सभी सीटों पर यात्री दिखने लगे। दोपहर के 2 बजे होंगे और मैं साइड में ऊपर की बर्थ पर लेटा था। दरवाजे से लगी सीट के पास एक दंपत्ति आकर बैठे। महिला हद से ज्यादा मोटी थी और उनके पतिदेव भी उनसे कुछ कम नहीं थे। महिला की उम्र लगभग 40 वर्ष रही होगी। ट्रेन के खुलने की थोड़ी देर बाद वे आराम करना चाहते थे। इस वजह से मोटे दंपत्ति अपर बर्थ पर चढ़ने की कोशिश करने लगे क्योंकि लोअर बर्थ अन्य महिला और पुरुष की थी और इस मोटे दंपत्ति को ऊपर चढ़ने में तकलीफ हो रही थी। मोटी महिला ने पहले अपनी तकलीफ अपने पति को बताई और फिर इस दंपत्ति ने नीचे की सीट वालों से अनुरोध करके अपनी सीट से अदला बदली कर ली। उन्हें लोअर बर्थ मिल गई और उनकी एक बड़ी समस्या का समाधान हो गया लेकिन असली समस्या तो अब आने वाली थी जिनसे वे अनजान थे।
पति तगड़े चौड़े थे। उन्होंने सफारी सूट पहन रखा था। कलाई में पीली चेन की घड़ी थी और ट्रेन पकड़ने से पहले उन्होंने जो पान मुंह में डाला था उसे अभी तक चबा रहे थे। उनकी बातों से लग रहा था कि वे किसी शादी समारोह में शामिल होकर लौट रहे है। दिन में अधिकांश लोग आराम कर रहे थे। ये दंपत्ति भी आराम से नीचे की सीट पर लेट गए। इस बीच एक वृद्ध आए और बिना अपनी उपस्थिति की अहसास कराए बीच की खाली बर्थ पर आराम से लेट गए। गाड़ी चले अभी एक घंटे बीते होंगे कि दोनों दंपत्ति जग गए फिर उन्होंने अपना लंच निकाला और उस पर टूट पड़े। मिडिल बर्थ नीचे न होने की वजह से महिला को बैठने में परेशानी हो रही थी। तो उन्होंने वृद्ध व्यक्ति से सीट से उतरने को कहा और उस सीट को खोलकर दोनों आराम से बैठ गए। वृद्ध सामने की सीट पर बैठ गए जो पतिदेव ने खाली की थी।
महिला अपना लंच निपटाने के बाद अब सोने का उपक्रम करने लगी लेकिन इस बार उन्होंने सीट वापस नहीं जमाई। उनके पतिदेव भी दूसरी बर्थ पर लेट गए और अब वृद्ध को दुत्कार लगाने लगे। वृद्ध बिलकुल असहाय लग रहा था। वृद्ध के हाथ में एक पॉलीथिन का पुराना थैला था और कमीज पजामा भी मैला था। उन्होंने बड़ी भारी गलती की, पतिदेव की सोने वाली सीट पर बैठे रहे क्योंकि उनके पैर के पास जगह बची थी। हालांकि अभी दिन था, रात भी नहीं हुई थी। महिला ने आंख खोली। वृद्ध को देखा और उनपर बरस पड़ी।
─यहां से उठो। कहीं और जगह देख लो।
अब पत्नी की आवाज सुनकर पतिदेव ने भी आंखे खोली और रौब भी झाड़ा।
─ये हमारी सीट है। कहां है तुम्हारी सीट। अपनी सीट पर जाकर बैठो।
वृद्ध ने विनती के स्वर में कहा
─मैं बीमार आदमी हूं। बाबूजी थोड़ी सी जगह दे दो बैठ जाने दो। एक घंटे बाद मेरा स्टेशन आ जाएगा। मैं उतर...
बात पूरी होने से पहले ही महिला चिल्लाई।
─नहीं, नहीं, आप कोई और जगह देख लो। यहां नहीं बैठने दूंगी।
तभी ऊपर बैठी महिला ने भी उसकी बात का समर्थन किया।
─ऐसे लोग जगह मांगकर बैठते हैं और आंख लगते ही आपका सामान लेकर चंपत हो जाते है। इसे यहां न बैठने दो।
अब बात सिर्फ बैठने की न रह गई थी। वृद्ध के सम्मान को ठेस पहुंची थी और वह उसके चेहरे से साफ झलक रहा था। यही चीज उसकी बातों से भी बयां हो गई।
─आपलोग पढ़े लिखे सभ्य लोग लग रहे हैं लेकिन किसी को कुछ कहने में जरा भी हिचक नहीं है। यह मेरी सीट नहीं है लेकिन मैं बीमार हूं और थोड़ी बैठ जाऊंगा तो आपका कुछ कम नहीं हो जाएगा। फिर उसने अपनी दवाई की पर्चियां निकाली और महाशय की तरफ बढ़ाने का उपक्रम करते हुए वापस पॉलीथिन में रख लिया। फिर कहा
─मैं बता दूं कि अब मैं यहीं बैठकर जाऊंगा।
वृद्ध की बातों में दृढ़निश्चय था।
लेकिन महिला भी हार कहां मानने वाली थी। उसने अपने पति को डांटना शुरू किया।
─कैसे हैं जी आप, आप इसे हटने को क्यों नहीं कहते।
पत्नि की मुंह से ताना उससे सुना न गया और पति ने भी ताव झांड़ना शुरू किया।
─आप यहां से उठते हो या मैं टीटी बुलाऊं।
बूढ़ा निंश्चित होकर बैठा रहा।
आपको जो करना है कर लो।
पति ने फटाक से मोबाइल निकालकर नंबर मिलाया और कहा
─फौरन दो चार जने हमरे डब्बे में चले आओ।
पांच मिनट भी नहीं बीते। चार नौजवान आगे के डिब्बे से यहां पहुंच गए। फिर क्या था। महिला और उनके पतिदेव का हौसला बढ़ गया और कहा
─देखो यह बुढ्ढा हमारी सीट से हट नहीं रहा है। इसे हटाओ।
अब बहस और भीड़ इकट्ठी देख आसपास के और लोग भी देखने आ गए।
पूछने लगे
क्या हुआ।
इस पूछने वालों की भीड़ में अधिकांश कॉलेज से रोज लौटने वाले लड़के थे और उनमें से अधिकांश उन्हें जानते थे। एक लड़के ने उस वृद्ध के पांव छुए और उनसे हालचाल पूछने लगा। एक और नौजवान आया और पूछा दादा क्या हुआ।
दादा ने कह दिया
─ये मोबाइल वाला आदमी दो चार जने को बुलाकर हमें सीट से हटा रहा है। उनका वाक्य पूरा हुआ और दो चार छात्र दोनों सीटों पर बैठ गए।
─अब देखते हैं कौन हटाता है।
अब जो लोग मोबाइल पर बात करके वृद्ध को देख लेने आए थे वे समझौता करने लगे। भाई साहब आप लोग बैठिए। सफर है मिल बैठकर चलना चाहिए।
थोड़ी देर में भीड़ छंट गई। दंपत्ति जो सोने के लिए लड़ रहे थे। उनके लिए बैठने की जगह कम पड़ रही थी।
अभी ज्यादा देर नहीं बीता। अगले डिब्बे से आए चारो लड़के वापस आए और दंपत्ति का सामान उठा लिया। उन्होंने कहा चाची आप भी हमारे साथ चलकर बैठो वहां जगह है। वृद्ध ने कहा मेरा स्टेशन 10 मिनट में आने वाला है। मैं उतर जाऊंगा। आपलोग आराम से सोकर जाना। लेकिन दंपत्ति को अभी भी भरोसा नहीं हो रहा था। दंपत्ति भारी मन से जाने को तैयार हुए और चले गए।
सीट पूरी खाली हो गई थी और उस पर छात्रों का कब्जा था। थोड़ी देर बाद वे वृद्ध भी उतर गए। मैं सोच रहा था आखिर थोड़ी सी जगह देकर बैठने की ही तो बात थी जो उस दंपत्ति ने नहीं दी। शायद वे जीतना चाहते थे लेकिन उन्हें पूरी सीट छोड़कर जाना पड़ा। और वृद्ध वे भी कहीं और बैठ सकते थे लेकिन ऐसे लोगों को कौन सबक सीखाता। मैं काफी देर तक इसी उधेड़बुन में पड़ा रहा कि ये किसकी हार और किसकी जीत है।